सुप्रीम कोर्ट का एक अचानक स्पष्टीकरण ने वोडाफोन आइडिया के शेयरों को एक दिन में 9.9% ऊपर धकेल दिया — एक ऐसा उछाल जो पिछले सप्ताह की भारी गिरावट को उलट रहा था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर शुक्रवार, 3 नवंबर, 2025 को शाम 2:28 बजे, कंपनी के शेयर ₹9.6 प्रति शेयर पर पहुँच गए, जो अपर प्राइस बैंड था। यह उछाल उसी दिन सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के बाद हुआ, जिसमें सरकार को वोडाफोन आइडिया की सभी अटकी हुई AGR देनदारियों को फिर से जाँचने की आजादी दी गई।
पिछले हफ्ते, 30 अक्टूबर, 2025 को, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना पहला लिखित आदेश जारी किया था, तो बाजार ने इसे खराब संकेत समझा। वोडाफोन आइडिया के शेयर दिनभर में 12% गिरकर ₹8.21 पर पहुँच गए। यह तीसरी लगातार गिरावट थी, और इसका असर पूरे टेलीकॉम सेक्टर पर पड़ा — भारती एयरटेल और रिलायंस जियो जैसी कंपनियों के शेयर भी 1.5% से 3% तक गिरे। लेकिन फिर अगले ही सप्ताह, सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश बदल दिया। यह बदलाव इतना तेज था कि कुछ समाचार एजेंसियाँ, जैसे CNBC TV18, तो 14% की बढ़ोतरी का दावा कर रही थीं।
वोडाफोन आइडिया लिमिटेड के लिए AGR (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) केवल एक बिल नहीं, बल्कि एक जीवन-मरण का मुद्दा है। यह वह गणना है जिसके आधार पर टेलीकॉम कंपनियों को सरकार को लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क देना होता है। 2019 और 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के व्यापक अर्थ को मान्यता दी — जिसमें अन्य आय जैसे ब्याज, लाभांश और विक्रय आय भी शामिल थी। इससे वोडाफोन आइडिया की कुल देनदारियाँ ₹1.6 लाख करोड़ तक पहुँच गईं, जिससे कंपनी बिल्कुल टूट चुकी थी।
2025 के अंत तक, कंपनी का बाजार मूल्य ₹1.04 लाख करोड़ था, लेकिन इसकी देनदारियाँ उससे कहीं अधिक थीं। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट का नया स्पष्टीकरण ने न सिर्फ शेयर बाजार को, बल्कि कंपनी के बचाव के लिए एक नया रास्ता खोल दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वोडाफोन आइडिया ने दोनों चीजों के लिए राहत की मांग की थी — अतिरिक्त देनदारियों के साथ-साथ पूरी AGR गणना का पुनर्मूल्यांकन। और अब, सरकार को दोनों पर विचार करने की आजादी है।
दूरसंचार विभाग (डीओटी), जो भारत सरकार के संचार मंत्रालय के अंतर्गत आता है, अब इस मामले पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए दबाव में है। एक समय था जब इस देनदारी को एक असंभव बोझ के रूप में देखा जा रहा था। अब यह एक राजनीतिक और आर्थिक अवसर बन सकता है।
कंपनी के लिए यह अभी तक एक अनुमानित राहत है। कोर्ट ने कोई समयसीमा नहीं बताई। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि डीओटी अगले 60-90 दिनों में एक नई गणना तैयार करेगा — जिसमें शायद ब्याज और अन्य आय को एक्सक्लूड किया जाए। अगर ऐसा हुआ, तो वोडाफोन आइडिया की देनदारियाँ 30-40% तक कम हो सकती हैं।
यह फैसला केवल वोडाफोन आइडिया के लिए नहीं, बल्कि पूरे टेलीकॉम सेक्टर के लिए एक निशान है। भारती एयरटेल और रिलायंस जियो ने भी AGR दावों के खिलाफ अपील की थी, लेकिन उन्होंने अपनी देनदारियों को चुकाने के लिए अलग-अलग योजनाएँ बनाई हैं। अगर वोडाफोन आइडिया के लिए राहत मिलती है, तो दूसरों के लिए भी एक नया दबाव बन सकता है — विशेषकर जब तक उनकी देनदारियाँ नहीं फिर से गिनी जातीं।
इसलिए, अगले कुछ महीनों में, डीओटी के सामने एक बड़ा निर्णय है — क्या वे एक नियमित नियम बनाएँगे, जिसमें सभी कंपनियों के लिए एक समान गणना हो? या फिर वे अलग-अलग कंपनियों के लिए अलग-अलग व्यवहार करेंगे? यह निर्णय भारत के टेलीकॉम बाजार के भविष्य को आकार देगा।
2025 के पहले 10 महीनों में, वोडाफोन आइडिया के शेयर 21% बढ़े — जबकि निफ्टी 50 केवल 9% बढ़ा। यह बहुत अच्छा प्रदर्शन था, लेकिन इसके पीछे एक बड़ा डर था: अगर सुप्रीम कोर्ट ने AGR के खिलाफ फैसला दिया, तो कंपनी बंद हो सकती थी।
अब, जब सुप्रीम कोर्ट ने राहत का रास्ता खोल दिया है, तो कंपनी के पास अब एक नया अवसर है। वह अपनी ऋण संरचना को भारतीय दिवालियापन और देनदारी पुनर्गठन कोड के तहत फिर से बना सकती है। अगर देनदारियाँ 40% तक कम हो जाती हैं, तो यह न केवल बैंकों के लिए बल्कि निवेशकों के लिए भी एक बड़ी राहत होगी।
नहीं। यह सिर्फ एक आशा का संकेत है। अभी तक कोई आधिकारिक नोटिस नहीं आया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को विचार करना है — लेकिन वह क्या करेगी, यह अभी भी एक प्रश्न है। यह भी नहीं पता कि क्या राहत केवल वोडाफोन आइडिया के लिए होगी या सभी टेलीकॉम कंपनियों के लिए।
एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट है — यह अब सिर्फ एक कानूनी मुकदमा नहीं रह गया। यह भारत के डिजिटल भविष्य का मुद्दा बन गया है। अगर वोडाफोन आइडिया बंद हो जाता, तो भारत में दो बड़े टेलीकॉम ऑपरेटर हो जाते — जिससे प्रतिस्पर्धा कम होती और ग्राहकों को अधिक शुल्क देना पड़ता।
अभी तक कोई आधिकारिक नवीनीकृत राशि घोषित नहीं की गई है, लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट के नए स्पष्टीकरण के अनुसार गणना बदल जाती है, तो वोडाफोन आइडिया की कुल देनदारियाँ ₹1.6 लाख करोड़ से घटकर ₹90,000-1.1 लाख करोड़ तक आ सकती हैं। यह एक 30-40% की कमी होगी, जो कंपनी के लिए बचाव का एकमात्र रास्ता बन सकती है।
पिछले आदेश में कोर्ट ने सरकार के व्यापक AGR परिभाषा को मान्यता दी थी, जिसमें ब्याज और अन्य आय शामिल थी। नया स्पष्टीकरण अब कहता है कि सरकार इस पूरी गणना को फिर से देख सकती है — और वोडाफोन आइडिया की दोनों मांगों (अतिरिक्त देनदारियों और पुनर्मूल्यांकन) पर विचार कर सकती है। यह एक नए विकल्प की ओर इशारा है।
अभी तक इन कंपनियों ने AGR दावों के खिलाफ अपील नहीं की है, लेकिन अगर वोडाफोन आइडिया के लिए राहत मिलती है, तो उनके लिए भी एक दबाव बन सकता है। विशेषकर अगर डीओटी एक समान गणना विधि अपनाता है, तो इन कंपनियों को भी अपनी देनदारियों को फिर से गिनना पड़ सकता है।
अभी तक नहीं, लेकिन अब एक संभावना है। अगर देनदारियाँ 40% तक कम हो जाती हैं, तो कंपनी अपने ऋण को पुनर्गठित कर सकती है और नए निवेश के लिए खुल सकती है। वरना, यह अगले 12-18 महीनों में दिवालिया होने के रास्ते पर थी। अब यह एक अलग कहानी हो सकती है।
अगर वोडाफोन आइडिया बच जाता है, तो ग्राहकों को बिल बढ़ने का खतरा कम हो जाता है। अगर यह बंद हो जाता, तो बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होती और एयरटेल और जियो बिल बढ़ा सकते थे। अब, यह एक बड़ी राहत है — खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में जहाँ वोडाफोन आइडिया अभी भी बड़ा ऑपरेटर है।
अगले 60 दिनों में, दूरसंचार विभाग एक नया AGR गणना मार्गदर्शिका तैयार करेगा। इसमें शायद ब्याज, लाभांश और अन्य आय को बाहर रखा जाएगा। इसके बाद, सरकार वोडाफोन आइडिया के साथ बातचीत शुरू करेगी। यह एक जटिल प्रक्रिया होगी, लेकिन अब यह एक असंभव नहीं रह गया है।