अगर आप रोज़ के समाचार पढ़ते हैं तो अक्सर सुनेंगे कि सरकार ने आर्थिक सलाहकार परिषद को बनाया है। लेकिन इस परिषद का असली काम क्या है, इसका असर हमारे जेब में कैसे पड़ता है, अक्सर स्पष्ट नहीं होता। चलिए आसान भाषा में समझते हैं कि यह परिषद क्यों बनाई गई, कौन कौन इसमें है और इसका काम क्या है।
प्रधान मंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (PMEAC) का मुख्य काम सरकार को आर्थिक नीति‑निर्धारण में मदद करना है। यह सिर्फ रिपोर्ट लिखना नहीं, बल्कि असली डेटा, बाजार के रुझान और अंतरराष्ट्रीय अनुभव को जोड़कर ठोस सलाह देना है। परिषद के प्रमुख उद्देश्य हैं:
इन सबके पीछे एक ही बात है – नीति बनाते समय डेटा‑ड्रिवेन और व्यावहारिक दृष्टिकोण रखना, ताकि जनता को सीधे फायदा हो।
परिषद में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं: आर्थिक वैज्ञानिक, उद्योगपतियों, बैंकिंग प्रतिनिधियों और कभी‑कभी सरकारी अधिकारी भी शामिल होते हैं। अक्सर प्रमुख सदस्य होते हैं:
इनमें से हर किसी की राय को मिलाकर सरकार को एक व्यापक रिपोर्ट मिलती है, जिसे बजट या नीति में बदला जाता है। उदाहरण के तौर पर, 2023 में इस परिषद ने कृषि बजट में लघु किसान को सब्सिडी बढ़ाने का सुझाव दिया था, जिससे कई किसानों को सीधा लाभ मिला।
अब सवाल उठता है – ये सब हमारे रोज़मर्रा के जीवन में कैसे दिखता है? अगर परिषद की सलाह से टैक्स रिफॉर्म होता है, तो हमें आयकर कम देना पड़ सकता है। अगर विदेश निवेश के लिए आसान नियम बनते हैं, तो नई कंपनियां हमारे शहरों में खुल सकती हैं और रोजगार के मौके बढ़ेंगे। बस, यही असर है।
सारांश में, प्रधान मंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद सरकार और आर्थिक विशेषज्ञों के बीच का पुल है। इसका काम मतभेदों को समझना, समाधान निकालना और उन्हें नीति में बदलना है। जब भी आप बजट या आर्थिक खबर देखते हैं, तो याद रखें कि पीछे इस परिषद की मेहनत छुपी होती है।
भारत के प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष रहे बिबेक देबरॉय का निधन 69 वर्ष की उम्र में 1 नवम्बर 2024 को हुआ। देबरॉय एक शानदार अर्थशास्त्री व लेखक थे, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था, धर्मशास्त्रों और कानूनी सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने महाभारत और रामायण के अनुवाद सहित कई महत्वपूर्ण साहित्यिक और आर्थिक कृतियों को भी प्रकाशित किया।
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