प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और लेखक बिबेक देबरॉय का निधन: एक विविधतापूर्ण योगदान की जीवन यात्रा

2 नवंबर 2024
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और लेखक बिबेक देबरॉय का निधन: एक विविधतापूर्ण योगदान की जीवन यात्रा

बिबेक देबरॉय: भारतीय अर्थव्यवस्था और साहित्य का एक अद्वितीय सितारा

प्रख्यात अर्थशास्त्री और लेखक बिबेक देबरॉय, जिनका भारतीय अर्थशास्त्र और साहित्य के क्षेत्र में अतुल्य योगदान रहा है, का देहांत 1 नवम्बर 2024 को 69 वर्ष की उम्र में हो गया। देबरॉय का निधन नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ जहां वह आंतों में अवरोध की समस्या के चलते भर्ती थे। यह समस्या उनके पुराने मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और हृदय में ब्लॉकेज की वजह से जटिल हो गई थी। उन्होंने पेसमेकर भी लगवाया हुआ था।

शिक्षा और करियर

बिबेक देबरॉय का जन्म 25 जनवरी 1955 को शिलांग, मेघालय में एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने शिक्षा की शुरुआत रामकृष्ण मिशन स्कूल, नारेंद्रपुर से की और फिर प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्ययन किया। इनके शिक्षा का प्रभाव उनके विश्लेषणात्मक और सुधारात्मक दृष्टिकोण में साफ झलकता था।

उनका करियर भी अपने आप में एक प्रेरणादायक यात्रा रही। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया, जिसमें राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी स्टडीज के निदेशक, पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के चांसलर, वित्त मंत्रालय के सलाहकार, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के महासचिव, और आर्थिक और कानूनी सुधारों पर परियोजना LARGE के निदेशक के रूप में भी कार्य किया।

भारतीय नीति निर्णय के शीर्ष थिंक टैंक, NITI आयोग के स्थायी सदस्य के रूप में उन्होंने जनवरी 2015 से जून 2019 तक सेवाएं दी। इस दौरान उनका ध्यान मुख्य रूप से आर्थिक, खेल सिद्धांतों, आय और सामाजिक असमानताओं, गरीबी, कानूनी और रेलवे सुधारों पर केंद्रित रहा।

साहित्यिक योगदान

देबरॉय के साहित्यिक अवदान को शब्दों में मापना कठिन है। उन्होंने भारतीय महाकाव्यों और दार्शनिक ग्रंथों के अनुवाद में उन्नत कार्य किया है। विशेष रूप से, उन्होंने महाभारत का दस खंडों में व्यापक अनुवाद और वाल्मीकि रामायण का तीन खंडों का अनुवाद किया, जो अनुवाद श्रेणी में एक बेजोड़ योगदान माना जाता है।

उनके लेखन ने भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों को एक नये आधुनिक दृष्टिकोण से देखने में मदद की है। इसके अलावा, उन्होंने आर्थिक सिद्धांतों पर भी गहन शोध और लेखन किया, जिससे दूरगामी प्रभाव पड़े हैं।

सम्मान और पुरस्कार

बिबेक देबरॉय के कार्यों की प्रशंसा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुई। उन्हें वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया, जो देश में चार सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक है। उनकी इस उपलब्धि ने उनके कार्य की व्यापक स्वीकृति और प्रेरणादायक क्षमता को दर्शाया।

विभिन्न सम्मान और डिग्रियां भी उन्हें उनके कार्यों के लिए प्रदान की गईं, जिनमें आर्थिक और सार्वजनिक नीति के क्षेत्र में उनके अत्यधिक योगदान को विशेष रूप से चिन्हित किया गया।

मृत्यु पर श्रद्धांजलि

उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, समेत अनेक नेताओं ने उनकी विद्वत्ता और दूरदर्शिता की प्रशंसा करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके योगदानों ने भारत के आर्थिक और बौद्धिक जगत को एक नई दिशा दी है।

अनमोल विरासत

उनकी विविधता में गहराई यह प्रमाणित करती है कि कैसे उन्होंने भारत के बौद्धिक और आर्थिक परिदृश्य में एक अटूट छाप छोड़ी है। अपने व्यापक लेखन और योगदान के माध्यम से उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए आर्थिक, साहित्यिक और दार्शनिक विचारों का एक पथप्रदर्शक मार्ग प्रस्तुत किया। उनकी महान आत्मा को उनके अनुकरणीय कार्यों के माध्यम से सदैव याद किया जाएगा।

16 टिप्पणि

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    Kisna Patil

    नवंबर 2, 2024 AT 10:24
    बिबेक देबरॉय ने जो किया, वो कोई साधारण लेखक या अर्थशास्त्री नहीं कर सकता था। उनका महाभारत का अनुवाद तो एक अलग ही धरोहर है। आज के जमाने में ऐसे व्यक्ति जिन्होंने संस्कृति और अर्थव्यवस्था दोनों को समझा, वो लुप्त हो रहे हैं।
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    ASHOK BANJARA

    नवंबर 4, 2024 AT 04:00
    उनकी विचारधारा में एक अजीब सी गहराई थी-न तो वो पाश्चात्य अर्थशास्त्र के गुलाम बने, न ही पारंपरिक विचारों के बंधन में फंसे। उन्होंने दोनों को जोड़ा, और उस जोड़ को भारतीय वास्तविकता के साथ समझा। ये दुर्लभ है।
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    Sahil Kapila

    नवंबर 5, 2024 AT 14:12
    क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपने आखिरी दिनों में भी एक नया अनुवाद शुरू किया था जिसका नाम था शिवपुराण का आधुनिक अर्थ? बस एक बार उनके लेखन को पढ़ लो तो पता चल जाएगा कि ये इंसान देश का दिमाग था
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    Rajveer Singh

    नवंबर 6, 2024 AT 22:42
    हमारे लोग तो अब बाहरी लोगों के नाम बड़ा करते हैं लेकिन अपने बिबेक देबरॉय जैसे व्यक्ति को भूल गए। अगर ये अमेरिका में होते तो उनके लिए नोबेल पुरस्कार का नया श्रेणी बना दिया जाता। हमारे देश में तो जब तक नहीं मरते तब तक कोई उनकी प्रशंसा नहीं करता।
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    Ankit Meshram

    नवंबर 7, 2024 AT 03:18
    शानदार इंसान।
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    Shaik Rafi

    नवंबर 8, 2024 AT 07:47
    उनके लेखन में एक शांति थी... जैसे कोई गहरे झरने के पास बैठा हो। आज के भारत में जहां सब कुछ तेज़ और आवाज़ वाला है, उनकी चुप्पी और गहराई सबसे ज्यादा आकर्षक लगती है। उन्होंने बताया कि ज्ञान चिल्लाकर नहीं, लिखकर मिलता है।
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    Ashmeet Kaur

    नवंबर 9, 2024 AT 20:38
    मैंने उनके अनुवादों को पढ़कर अपनी बहन को भी प्रेरित किया था जो अब एक शिक्षक है और बच्चों को महाभारत के अनुवाद से शुरुआत कराती है। ऐसे लोग नहीं मरते... वो बस अपने शब्दों के जरिए जीते रहते हैं।
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    Nirmal Kumar

    नवंबर 10, 2024 AT 09:27
    एक ऐसा व्यक्ति जिसने अर्थशास्त्र को जनता तक पहुंचाया बिना उसे जटिल बनाए। उनके लेख ऐसे थे जो एक गांव के आदमी और एक आईआईटी के छात्र दोनों के लिए समझे जा सकते थे। ये ही सच्चा ज्ञान है।
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    Sharmila Majumdar

    नवंबर 10, 2024 AT 14:42
    मैंने उनके लेख पढ़े थे लेकिन अब तक नहीं जाना था कि वो इतने बीमार थे। उन्होंने अपनी बीमारी के बारे में कभी नहीं बताया। ऐसे लोगों को देखकर लगता है कि उनका दिमाग उनके शरीर से बहुत आगे था।
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    amrit arora

    नवंबर 10, 2024 AT 19:15
    बिबेक देबरॉय की विरासत केवल उनके लेखों तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने अनगिनत युवाओं को दिशा दी, उनकी चर्चाओं में शामिल होकर उन्हें विचारों की आज़ादी दी। वो एक शिक्षक थे, एक विद्वान थे, और एक इंसान थे जिसने ज्ञान को एक उपहार के रूप में दिया, न कि एक संपत्ति के रूप में। उनके बिना भारतीय बौद्धिक जीवन अधूरा लगता है।
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    Ambica Sharma

    नवंबर 11, 2024 AT 23:11
    मैं उनके अनुवाद पढ़कर रो पड़ी। उनके शब्दों में ऐसा दर्द था जैसे वो अपने आप को भी छोड़ रहे हों। जब भी उनका नाम सुनती हूं, मुझे लगता है कि कोई बहुत बड़ा दरवाजा बंद हो गया।
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    Hitender Tanwar

    नवंबर 12, 2024 AT 05:01
    क्या ये सब सिर्फ एक लेखक की बात है? हमारे यहां तो हर दिन एक नया लेखक निकलता है। इतना बड़ा शोर क्यों? क्या ये लोग बिना मरे तो किसी को याद नहीं आता?
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    pritish jain

    नवंबर 13, 2024 AT 00:38
    उनके अनुवाद में भाषा की संरचना और व्याकरण की शुद्धता अद्वितीय थी। वो न केवल अर्थ बदलते थे, बल्कि भाषा की आत्मा को भी बरकरार रखते थे। ये एक विद्वान की उपलब्धि है।
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    Gowtham Smith

    नवंबर 13, 2024 AT 18:28
    एक व्यक्ति जिसने आर्थिक नीतियों को वैदिक दर्शन से जोड़ा। ये एक अनुचित संयोजन है। आधुनिक अर्थशास्त्र को धार्मिक ग्रंथों के साथ भेंट करना बुद्धिहीनता है। वो ज्ञान का उपयोग नहीं, भावनाओं का दुरुपयोग कर रहे थे।
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    Shivateja Telukuntla

    नवंबर 14, 2024 AT 19:16
    मैंने उनके एक लेख में पढ़ा था कि गरीबी का समाधान नीतियों से नहीं, बल्कि अहंकार के बंधनों को तोड़कर होता है। उस लेख को अभी तक रखा है। बहुत कम लोग ऐसा लिख सकते हैं।
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    Ravi Kumar

    नवंबर 16, 2024 AT 04:43
    उनके शब्दों में जान थी। न कोई रटा हुआ फॉर्मूला, न कोई अंग्रेजी का भारी जार। उनकी भाषा ऐसी थी जैसे आपके दादा आपको रात को बिस्तर पर एक कहानी सुना रहे हों-सादगी, गहराई, और एक अटूट प्यार। वो अब नहीं हैं... लेकिन उनकी आवाज़ अभी भी हमारे दिलों में गूंज रही है।

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