जब एक ही पार्टी के पास पर्याप्त सीटें नहीं होती, तो वह दूसरी पार्टियों के साथ हाथ मिलाती है। यही ‘कोलिशन सरकार’ कहलाती है। बीजेपी‑NDA, कांग्रेस‑UPA या विभिन्न राज्य की गठित सरकारें इस मॉडल पर ही बनती हैं। सरल शब्दों में, ये कई दलों की साझेदारी है जो मिलकर संसद या विधानसभा में बहुमत बनाते हैं।
कोलिशन का सबसे बड़ा फायदा है विविधता – हर क्षेत्र, हर वर्ग का प्रतिनिधित्व मिलता है। इससे नीति बनाते समय अलग‑अलग आवाज़ें सुनने को मिलती हैं और अक्सर ज्यादा संतुलित फैसले निकलते हैं। दूसरी ओर, अलग‑अलग पार्टियों की मंशा और लक्ष्यों में टकराव हो सकता है, जिससे सरकार की स्थिरता पर सवाल उठता है।
1. वास्तविक प्रतिनिधित्व – छोटे‑छोटे क्षेत्रीय दल भी सत्ता में आ सकते हैं, जिससे स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर उठते हैं।
2. नीति में संतुलन – विभिन्न विचारधाराओं के साथ मिलकर गठित नीति अक्सर अधिक व्यापक और जिम्मेदार रहती है।
3. स्थानीय कारगरता – अगर कोई राज्य में कई पार्टियां गठबंधन बनाती हैं, तो वह राज्य अपने खास समस्याओं को जल्दी हल कर सकता है, जैसे बिहार या पश्चिमी उत्तरांचल में हुई गठित सरकारें।
कोलिशन का सामना अक्सर दो मुख्य समस्याओं से होता है: निर्णय‑लेने में देरी और गठबंधन में मतभेद। जैसे ही कोई बड़ा बिल पार होना चाहिए, अगर साथी पार्टियों के बीच सहमति नहीं बनती, तो काम रुक जाता है। इस समस्या के हल के लिए स्पष्ट समझौते, लिखित शर्तें और ‘मिनिमम वोट कैप्स’ तय किए जाते हैं।
दूसरी समस्या है ‘छोटे गठित दलों का प्रभाव कम होना’। अक्सर बड़े दल अपना वजन दिखाते हैं, लेकिन छोटे दल के नेता भी अपने मतदाताओं को नहीं भुलाते। इसलिए, छोटे दलों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए ‘सलाहकार मंडल’ या ‘संयुक्त समिति’ में जगह मिलनी चाहिए।
एक और बात जो अक्सर नजरअंदाज होती है, वह है जनता का भरोसा। जब जनता देखती है कि विभिन्न दलों के बीच बातचीत से काम हो रहा है, तो वह सरकार को स्थायी मानती है। इसलिए, गठबंधन में पारदर्शिता और खुले संवाद को लेवल अप करना जरूरी है।
अंत में, कोलिशन सरकार केवल एक ‘बादनामा’ नहीं, बल्कि एक मज़बूत लोकतांत्रिक प्रयोग है। अगर सारे साझेदार मिलकर लक्ष्य तय करें, तो देश की प्रगति में गति आ सकती है। तो अगली बार जब आप चुनाव देखें, तो सिर्फ वोट की गिनती नहीं, बल्कि गठित दलों के बीच के समझौते को भी देखें – यही असली राजनीति की कहानी है।
साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने अपने दूसरे उद्घाटन समारोह में देश की विषाक्त राजनीतिक खाइयों और गहरी असमानता पर चिंता जताई। ANC और DA सहित कई पार्टियों के गठबंधन सरकार की आलोचना छोड़कर, राष्ट्रपति ने इन चुनौतियों को सामूहिक प्रयास से निपटने का संकल्प किया। समारोह में कई सांस्कृतिक प्रदर्शन और 21 तोपों की सलामी दी गई।
और अधिक जानें