Navratri 2025 का उत्सव 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों को पूजते हुए भक्त गूँजते हैं, और प्रत्येक दिन का अपना विशेष अर्थ, रंग और विधि होती है। इस लेख में हम खास तौर पर दूसरे और तृतीय दिन की पूजन विधियों, उनके प्रतीकात्मक अर्थों और रोज़मर्रा के जीवन में इनकी उपयोगिता पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
Maa Brahmacharini – द्वितीय दिन
दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी को अर्पित है, जो तप, संगत और अद्भुत धीरज की देवी हैं। उनका स्वरूप निरामय पावनता दर्शाता है – वे नंगे पैर चलती हैं, दाएँ हाथ में जापमाला और बाएँ हाथ में कमंडल लेती हैं। इस रूप की पूजा करने से भक्तों में आत्म‑नियंत्रण, समृद्धि और आध्यात्मिक शक्ति का संचार माना जाता है।
- तैयारी: पूजन के लिए शुभ मुहूर्त चुनें, पूजा स्थल को गीले कपड़े से साफ‑सुथरा रखें और सभी मंत्र, दीप, धूप, फूल तथा अभिषेक सामग्री इकट्ठा करें।
- कलश स्थापना: एक पवित्र कलश को पानी से भरें, उसमें पान के पत्ते और सुपारी डालें, ऊपर नारियल रखें तथा आम के पत्तों से सजाएँ। गंगाजल छिड़ककर शुद्धता बढ़ाएँ।
- देवी का समीकरण: माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्तिकल्प या चित्र को अलटार पर रखें, सफ़ेद चूनर और ताजे फूलों से सजाएँ।
- अभिषेक: जल, दूध, दही, शहद तथा घी का मिश्रण (पंचामृत) लेकर देवी को धीरे‑धीरे छिड़कें। बाद में हवन में चन्दन और सुगंधित तेल डालें।
- भोग: गुड़ और शक्कर के लड्डू, बेसन के ठेकके या रसगुल्ले तैयार करें। इनके साथ पान, सुगंधित अर्चना और धूप जलाएँ।
- मंत्र: ओम् देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः। इसे तीन बार उच्चारित कर के अंतिम आशीर्वाद प्रदान करें।
पूजन के बाद शान्ति के लिए हल्की धूप जलाकर घर के चारों कोनों में घुमाएँ। यह प्रक्रिया न केवल शारीरिक शुद्धि बल्कि मानसिक स्पष्टता भी लाती है।
Maa Chandraghanta – तृतीय दिन
तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित है, जिन्हें अर्धचंद्र जैसी घंटी और साहसिक शक्ति के मिश्रण के रूप में जाना जाता है। उनका स्वरूप दस हाथों वाला, प्रत्येक में विभिन्न दिव्य शस्त्र धारण करता हुआ दर्शाया जाता है, और वह बाघ पर सवार होती हैं। यह रूप शौर्य, सुरक्षा और आध्यात्मिक संतुलन को दर्शाता है।
- संतुलन का अर्थ: माँ चंद्रघंटा का आह्वान करने से कार्य‑स्थल में चुनौतियों को पार करने की शक्ति मिलती है और घर में शांति बनी रहती है।
- ध्यान: पूजन स्थल को पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर रखें, फिर माँ की छवि को आँखों में स्थापित कर अर्धचंद्र को कलात्मक रूप से देखिए।
- आवहान: ‘ओम् देवी चंद्रघंटायै नमः’ का मंत्र उच्चार कर देवी को अपने गृह में आमंत्रित करें।
- अभिषेक एवं स्नान: कलश में पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शुगर) मिलाएँ और इसे धीरे‑धीरे देवी पर डालें। इसके बाद गंगाजल से दोबारा स्नान कर शुद्धि को दोहरी बनाएं।
- वस्त्र औ’ सजावट: नई सफेद चूनर या रंगीन वस्त्र को भगवान के पैर में लपेटें, फिर चन्दन‑लेपित चेहरे पर कुंकुम और चावल के दाने लगाएँ।
- भोग‑पृष्ठ: मीठे फल, कंद, अंजीर, सजावटी मिठाई और नारियल के टुकड़े प्रस्तुत करें। साथ ही पान‑सुपारी और धूप‑बत्ती की सजावट भी रखें।
- प्रकाश एवं ध्वनि: दीपक में घी सर्व करके उसे स्थिर रखें, और सात शंखों या घण्टियों से ध्वनि निकालें, जिससे माहौल पवित्र बनता है।
इस दिन के रंग आमतौर पर हल्का नीला या सफ़ेद होते हैं; भक्त इन रंगों के वस्त्र पहनते हैं ताकि ऊर्जा समान रूप से प्रवाहित हो।
Navratri के बाकी सात दिनों में शैलपुत्री, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कलरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की अलग‑अलग पूजा विधियाँ जारी रहती हैं, जिससे अंततः 2 अक्टूबर को दुर्गा पूजा के साथ ब्रह्मांड में बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है।