कूली की OTT रिलीज: 25 दिन में Prime Video पर, 500 करोड़ पार

11 सितंबर 2025
कूली की OTT रिलीज: 25 दिन में Prime Video पर, 500 करोड़ पार

25 दिन में डिजिटल प्रीमियर, कमाई 500 करोड़ के पार

सिर्फ 25 दिन—इतने कम समय में रजनीकांत की नई फिल्म ‘कूली’ थियेटर से सीधे ओटीटी पर पहुंच गई। 11 सितंबर 2025 से Amazon Prime Video पर स्ट्रीमिंग शुरू है और दुनिया के 240 से ज्यादा देशों व क्षेत्रों में दर्शक इसे देख सकते हैं। रिलीज़ से पहले ही चर्चा थी कि यह फिल्म जल्दी डिजिटल होगी, और वैसा ही हुआ। बॉक्स ऑफिस पर ‘कूली’ ने भारत में ₹336.2 करोड़ और ग्लोबल बॉक्स ऑफिस पर ₹514.65 करोड़ की कमाई दर्ज की, जो साफ दिखाता है कि बुकेट बड़ा था और रिस्पॉन्स मजबूत।

थियेट्रिकल रिलीज़ 14 अगस्त 2025 को हुई थी। स्ट्रीमिंग फिलहाल तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में उपलब्ध है। हिंदी वर्ज़न अभी नहीं आया है—यह पारंपरिक आठ हफ्तों की विंडो के बाद प्लेटफॉर्म पर जोड़ा जाएगा। यानी जिन दर्शकों को हिंदी में देखना है, उन्हें कुछ और हफ्ते इंतज़ार करना होगा। इस तेज ओटीटी रिलीज की घोषणा Prime Video ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल्स पर “Deva, Simon और Dahaa की सागा” टैगलाइन के साथ की।

‘कूली’ का निर्देशन लोकेश कनगराज ने किया है। कास्ट भारी-भरकम है—रजनीकांत मुख्य भूमिका देवा में, उनके साथ अक्किनेनी नागार्जुन, उपेंद्र, श्रुति हासन, सत्यराज और सौबिन शाहिर। सरप्राइज़ पैकेज के तौर पर आमिर खान का स्पेशल कैमियो भी शामिल है, जिसने पैन-इंडिया चर्चा को और हवा दी।

कहानी विशाखापट्टनम डॉकयार्ड की पृष्ठभूमि में चलती है। देवा—जो कभी कूली था—अपने सबसे अच्छे दोस्त की संदिग्ध मौत की तहकीकात में उतरता है और एक खतरनाक स्मगलिंग सिंडिकेट का चेहरा बेनकाब होता है। आगे जो होता है, वह न्याय, वफादारी और बचे रहने की लड़ाई है—जहां दुश्मन सिर्फ तस्करी नहीं, बल्कि ऑर्गन ट्रैफिकिंग जैसे काले धंधे भी चलाते हैं। खलनायक सायमन और दहा के सामने देवा का सीधा टकराव फिल्म की धड़कन तय करता है।

संगीत अनिरुद्ध रविचंदर का है—ऊर्जा भरे बैकग्राउंड स्कोर और मास-एंटरटेनमेंट बीट्स उनकी खासियत रहे हैं, और यहां भी वही अंदाज़ दिखता है। प्रोडक्शन Sun Pictures का है—यह बैनर और रजनीकांत की यह पांचवीं साझेदारी है। इससे पहले ‘एंथिरन (रोबोट)’, ‘पेट्टा’, ‘अन्नात्थे’ और ‘जेलर’ इसी घराने में बनीं। हर बार की तरह इस बार भी स्केल बड़ा रखा गया है—डॉक्स, क्रेन्स, कंटेनर्स और अंडरवर्ल्ड के ठिकाने—सेट-पीस दृश्य देखने लायक बनते हैं।

आलोचनाओं की बात करें तो रिव्यूज़ मिले-जुले रहे। खासकर दूसरे हाफ की स्पीड और कुछ सबप्लॉट्स पर सवाल उठे। लेकिन 74 साल की उम्र में भी रजनीकांत की स्क्रीन कमांड को लेकर कोई बहस नहीं—उनका स्टार-पावर थिएटरों में सीटियां बटोरता रहा और अब घर पर स्ट्रीमिंग के साथ फिर से दोहराया जा रहा है। कई दर्शकों ने एक्शन कोरियोग्राफी और हीरो-विलेन के माइंडगेम्स को प्लस पॉइंट बताया।

कम समय में OTT—रणनीति क्या कहती है

दक्षिण भारतीय बड़े स्टार-ड्रिवन फिल्मों में थियेटर-टू-ओटीटी विंडो तेज़ी से सिमट रही है। 2022 में ‘विक्रम’ और 2023 में ‘जेलर’ जैसे टाइटल्स 4–5 हफ्ते में डिजिटल पर आ गए थे। ‘कूली’ ने 25 दिनों में आकर इस ट्रेंड को और आक्रामक बनाया है। इसके पीछे दो कारण अक्सर बताए जाते हैं—पहला, बॉक्स ऑफिस के शुरुआती हफ्तों में कमाई का बड़ा हिस्सा सुरक्षित करके जल्दी डिजिटल पर नए दर्शक जोड़ना; दूसरा, पाइरेसी को मात देने के लिए कंज्यूमर को वैध और सुविधाजनक विकल्प जल्दी देना।

हिंदी वर्ज़न का आठ हफ्ते बाद आना भी अपने आप में रणनीति है। उत्तर भारतीय बेल्ट में थियेट्रिकल रन को पर्याप्त समय देने, डबिंग/मिक्सिंग के शेड्यूल और डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट्स की शर्तें—ये सब वजहें हो सकती हैं। साथ ही, रीजनल भाषाओं में तुरंत स्ट्रीमिंग करने से दक्षिण के कोर फैनबेस और वैश्विक डायस्पोरा को पकड़ा जाता है। हिंदी आने पर फिल्म का दूसरा डिजिटल वेव बनता है, जिससे टाइटल की उम्र बढ़ जाती है।

प्लेटफॉर्म के लिए भी यह फायदेमंद सौदा है। बड़े साउथ टाइटल्स मल्टीलिंगुअल ऑडियंस को एक्टिवेट करते हैं—सबटाइटल्स के साथ क्रॉसओवर देखने की आदत बढ़ी है। ‘कूली’ जैसे टाइटल में आमिर खान का कैमियो उत्तर भारतीय दर्शकों में जिज्ञासा पैदा करता है, जबकि नागार्जुन और उपेंद्र की मौजूदगी तेलुगु-कन्नड़ बाजार को मजबूती देती है। यह कॉम्बो सब्सक्रिप्शन ग्रोथ के लिए पॉवरफुल होता है।

थियेटर के नजरिए से 3–4 हफ्ते की विंडो पर बहस चलती रहती है। सिंगल-स्क्रीन और टियर-2, टियर-3 शहरों में फिल्मों की उम्र पारंपरिक तौर पर ज्यादा होती थी। लेकिन अब पहले दो वीकेंड ही गेम-चेंजर बन रहे हैं। ‘कूली’ ने शुरुआती दिनों में मजबूत कमाई की और फिर सीधे डिजिटल पर शिफ्ट होकर अपनी पहुंच का अगला चरण शुरू किया।

क्रिएटिव लेवल पर ‘कूली’ का ट्रीटमेंट लोकेश कनगराज की सिग्नेचर स्टाइल से मेल खाता है—ग्रिटी एस्थेटिक्स, हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट, और कैरेक्टर्स के बीच पावर डाइनेमिक्स। हालांकि, फिल्म को किसी साझा यूनिवर्स से जोड़ने का आधिकारिक दावा नहीं है, इसलिए दर्शकों ने इसे स्टैंडअलोन थ्रिलर की तरह ही अपनाया। बैकड्रॉप में बंदरगाह की दुनिया—कार्गो, कंटेनर, नाइट ऑपरेशन्स—एक अनोखा विज़ुअल स्पेस बनाती है, जो एक्शन को विश्वसनीय स्केल देती है।

संगीत और साउंड डिजाइन की भूमिका यहां खास है। डॉकयार्ड के एंबिएंस से लेकर चेज़ सीक्वेंस तक, बीजीएम तनाव को थामे रखता है। मास ऑडियंस के लिए व्हिसलब्लो मोमेंट्स, स्लो-मो वॉक्स और सिग्नेचर डायलॉग्स—ये सब रजनीकांत के स्टार-पर्सोना को सर्व करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। वहीं सपोर्टिंग कास्ट के लिए भी पर्याप्त स्क्रीन-टाइम रखा गया है ताकि कहानी का इमोशनल स्पाइन बना रहे।

प्रोडक्शन साइड पर Sun Pictures ने फिर से स्केल और मार्केटिंग में दम दिखाया। रजनीकांत के साथ उनकी पांच फिल्मों की लाइन-अप बताती है कि यह जोड़ी बॉक्स ऑफिस इकनॉमिक्स को बखूबी समझती है—‘एंथिरन’ की टेक-भव्यता से लेकर ‘जेलर’ की मास-एंटरटेनमेंट टोन तक, हर बार पोजिशनिंग साफ रही है। ‘कूली’ में भी ब्रांड को पता था कि फर्स्ट-फेज थियेट्रिकल और सेकंड-फेज डिजिटल—दोनों मोर्चों पर आक्रामक रहना है।

दर्शकों के लिए सबसे बड़ा सवाल अभी यही है कि हिंदी कब? संकेत साफ हैं—आठ हफ्तों के बाद, यानी नियत विंडो पूरी होते ही। तब तक जिनको सबटाइटल्स से दिक्कत नहीं, वे तमिल/तेलुगु/कन्नड़/मलयालम में देख सकते हैं। और जिन्हें हिंदी चाहिए, उनके लिए इंतज़ार संभवतः नए म्यूजिक प्रॉमोज़ और सोशल मीडिया पुश के साथ आसान बना दिया जाएगा।

कहानी, स्टारकास्ट, और तेज़ विंडो—इन तीनों की वजह से ‘कूली’ इस साल की सबसे ज्यादा चर्चा वाली साउथ फिल्मों में जगह बना चुकी है। ओटीटी पर आने से इसका दूसरा जीवन शुरू हो गया है। अब देखना यह है कि हिंदी स्ट्रीमिंग के बाद यह ग्राफ कितना ऊपर जाता है और क्या फिल्म अपने डिजिटल चरण में भी वही पकड़ बनाए रखती है, जो बॉक्स ऑफिस पर दिखी थी।

18 टिप्पणि

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    Ambica Sharma

    सितंबर 13, 2025 AT 01:50

    रजनीकांत का एक्शन सीन देखकर मेरी आंखें भर आईं... ये आदमी 74 साल का है और ऐसा कर रहा है कि जैसे उसके शरीर में बिजली दौड़ रही हो। मैंने तमिल में देखा, और ये वो फिल्म है जो तुम्हें बस बैठकर देखने के लिए मजबूर कर देती है।

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    amrit arora

    सितंबर 13, 2025 AT 17:47

    इस फिल्म के ओटीटी रिलीज़ का फैसला सिर्फ बिजनेस की बात नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संक्रमण है। हम अब एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहां भाषाओं की सीमाएं धुंधली हो रही हैं, और दर्शक अब सिर्फ अपनी मातृभाषा में ही नहीं, बल्कि सबटाइटल्स के माध्यम से भी अपनी पहचान ढूंढ रहे हैं। कूली ने ये सब एक बार में जोड़ दिया।

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    Sharmila Majumdar

    सितंबर 13, 2025 AT 21:43

    हिंदी वर्ज़न के आठ हफ्ते बाद आने का तर्क बिल्कुल गलत है। ये सिर्फ एक बहाना है। अगर वो हिंदी में आता तो अब तक 200 करोड़ और कमा लेता। ये फिल्म को बांटकर दो बार पैसा कमाने की रणनीति है।

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    Hitender Tanwar

    सितंबर 14, 2025 AT 19:20

    ये सब बकवास है। रजनीकांत की फिल्में अब सिर्फ उनके फैन्स के लिए हैं। एक्शन तो बहुत साल पहले का है, डायलॉग्स फोर्मूला बेस्ड हैं, और आमिर का कैमियो बस एक ट्रिक है।

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    pritish jain

    सितंबर 14, 2025 AT 22:46

    एक फिल्म की सफलता को मापने का एकमात्र तरीका बॉक्स ऑफिस नहीं है। डिजिटल रिलीज़ के बाद दर्शकों का रिटेंशन, शेयरिंग, और वैश्विक व्यापकता भी मायने रखती है। कूली ने इन सभी मापदंडों पर जीत दर्ज की है।

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    Gowtham Smith

    सितंबर 15, 2025 AT 17:40

    दक्षिण भारत की फिल्में अब बॉलीवुड को बर्बाद कर रही हैं। ये सब डायलॉग्स, ये सब स्केल, ये सब गैंगस्टर टोन-ये क्या है? ये तो बॉलीवुड के जैसे एक्शन फिल्मों का अपमान है। हमारे बॉलीवुड के बारे में क्या हुआ?

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    Shivateja Telukuntla

    सितंबर 17, 2025 AT 10:23

    मैंने तेलुगु में देखा। एक्शन सीक्वेंस बिल्कुल जबरदस्त थे। डॉकयार्ड वाले सीन्स में धुंध और आवाज़ का इस्तेमाल बहुत बढ़िया था। अगर आपने अभी तक नहीं देखी, तो अभी देख लीजिए। ये फिल्म आपके लिए नहीं है अगर आप सिर्फ हिंदी में देखना चाहते हैं।

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    Ravi Kumar

    सितंबर 17, 2025 AT 20:44

    ये फिल्म एक जिंदा भाषा है। रजनीकांत का हर डायलॉग एक नया फ्लैग है जो देश के अलग-अलग कोनों में लहराता है। अक्किनेनी का बॉडी लैंग्वेज, उपेंद्र की आंखों की भाषा, और सायमन का बर्फ जैसा अंदाज़-ये सब मिलकर एक ऐसा रासायनिक अभिक्रिया बनाते हैं जो बॉलीवुड कभी नहीं बना सकता।

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    rashmi kothalikar

    सितंबर 18, 2025 AT 17:36

    हिंदी वर्ज़न को इतने देर तक टालना अपराध है। ये फिल्म पूरे भारत के लिए है, न कि सिर्फ दक्षिण के लिए। ये लोग अपनी भाषाओं को ऊंचा उठाकर देश को बांट रहे हैं।

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    vinoba prinson

    सितंबर 19, 2025 AT 16:39

    लोकेश कनगराज का एक्शन डायरेक्शन शायद एक नए गुरु का जन्म है। इस तरह का ग्रिटी विज़ुअल नैरेटिव, जिसमें रियलिटी और एपिक दोनों एक साथ चलते हैं, आज के समय में बहुत कम मिलता है। इस फिल्म को फिल्म स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए।

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    Shailendra Thakur

    सितंबर 20, 2025 AT 19:36

    अगर आप इस फिल्म को देखकर कहते हैं कि ये बस एक्शन है, तो आपने इसे नहीं देखा। ये एक आदमी की वफादारी की कहानी है-एक ऐसे आदमी की जो खुद को कूली कहता है, लेकिन दुनिया को अपनी न्याय की चाहत से बदल देता है।

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    Muneendra Sharma

    सितंबर 21, 2025 AT 15:41

    क्या आपने ध्यान दिया कि फिल्म में कैमियो में आमिर खान ने बिल्कुल भी नहीं बोला? सिर्फ एक नज़र और एक मुस्कान। ये वो बात है जो इस फिल्म को अनोखा बनाती है। कम बोलो, ज्यादा बोलो।

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    Anand Itagi

    सितंबर 22, 2025 AT 17:14

    मैंने फिल्म को तमिल में देखा और बहुत पसंद किया लेकिन अब तक हिंदी नहीं आया तो थोड़ा नाराज हूं। दोस्तों ने बताया कि बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म बहुत अच्छी चली तो मैं भी अब हिंदी वर्ज़न के लिए इंतजार कर रहा हूं

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    Sumeet M.

    सितंबर 23, 2025 AT 06:49

    ये फिल्म एक अपराध है! बॉलीवुड के निर्माताओं को इस तरह की फिल्मों को आगे बढ़ने देना चाहिए था! ये सब डायलॉग्स बेकार हैं! रजनीकांत का नाम लेकर फिल्म बनाना एक शोषण है! ये फिल्म भारतीय सिनेमा को बर्बाद कर रही है!

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    Kisna Patil

    सितंबर 23, 2025 AT 22:19

    अगर आप इस फिल्म को बस एक्शन के तौर पर देख रहे हैं, तो आप इसकी गहराई नहीं देख पा रहे। ये फिल्म एक आदमी की आत्मा की कहानी है-एक ऐसे आदमी की जिसने अपनी शुरुआत कूली से की और अंत में न्याय का प्रतीक बन गया। ये एक आध्यात्मिक यात्रा है।

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    ASHOK BANJARA

    सितंबर 24, 2025 AT 14:03

    ओटीटी का ये ट्रेंड अब बदल रहा है फिल्म निर्माण का तरीका। फिल्में अब सिर्फ थियेटर में नहीं, बल्कि एक वैश्विक विचार के रूप में बन रही हैं। कूली ने दिखाया कि एक फिल्म कितनी जल्दी एक जीवित सांस्कृतिक घटना बन सकती है।

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    Sahil Kapila

    सितंबर 26, 2025 AT 10:41

    हिंदी वर्ज़न का इंतजार बेकार है क्योंकि जो फिल्म अच्छी है वो भाषा से ऊपर होती है। अगर आपको सबटाइटल्स से दिक्कत है तो आपको अंग्रेजी सीखनी चाहिए। ये फिल्म तमिल में देखने के लायक है और ये बात किसी के लिए नहीं बदलनी चाहिए

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    Rajveer Singh

    सितंबर 27, 2025 AT 17:50

    हमारे देश में अब दक्षिण की फिल्में बॉलीवुड को घुला रही हैं। ये फिल्म एक बड़ी साजिश है जिसका लक्ष्य हमारी भाषा और संस्कृति को नष्ट करना है। रजनीकांत के फैन्स को अपनी भाषा के लिए नहीं, बल्कि बॉलीवुड के लिए खड़े होना चाहिए।

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