आरटीई में क्रॉस‑वार्ड प्रवेश: उत्तर प्रदेश में नई सुविधा

7 अक्तूबर 2025
आरटीई में क्रॉस‑वार्ड प्रवेश: उत्तर प्रदेश में नई सुविधा

जब उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग ने 18 सितंबर 2025 को घोषणा की, तो कई माता‑पिता का चेहरा हल्का हो गया; अब उनका बच्चा अपने वार्ड से बाहर के स्कूल में भी दाखिला ले सकता है। इस नए नियम को 2026‑27 शैक्षणिक सत्र से लागू किया जाएगा, और इससे राज्य‑भर में लाखों बच्चों की शिक्षा‑पहुंच में बड़ा बदलाव आएगा।

पहले के नियम और उनका बोझ

पहले आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के तहत बच्चा केवल उसी वार्ड के स्कूल में ही आवेदन कर सकता था जहाँ उसका घर स्थित था। यह प्रतिबंध हर साल हजारों आवेदन को अस्वीकार करने का कारण बना। लखनऊ में रिपोर्टिंग के अनुसार, 2025 के शुरुआती चरण में 3,000‑4,000 आवेदन आते थे, पर केवल 1,200‑1,500 बच्चों को ही जगह मिल पाती थी। बाकी सभी को वार्ड‑सीमा के कारण खारिज कर दिया जाता था।

नया क्रॉस‑वार्ड प्रवेश कैसे काम करेगा

नई व्यवस्था में आवेदक तब ही दूसरे वार्ड के स्कूल में आवेदन कर सकेगा जब अपने वार्ड में सीटें खाली न हों और दूसरे वार्ड में खाली सीट उपलब्ध हो। यह सुविधा पाँचवें चरण में सक्रिय होगी, जिसमें पहले चार चरण में स्थानीय वार्ड की सीटें समाप्त हो चुकी होंगी। विभाग ने बताया कि इस बदलाव से न केवल अभिभावकों को सुविधा होगी, बल्कि बच्चों को बेहतर शैक्षणिक विकल्प भी मिलेंगे।

  • आवेदन प्रक्रिया का पांचवां चरण केवल तब खुलेगा जब स्थानीय वार्ड में कोई जगह न बचे।
  • यदि दूसरे वार्ड में खाली सीटें हों, तो उम्मीदवार को उस स्कूल में चयन किया जाएगा।
  • नियमितता के तहत आय 1 लाख रुपये से नीचे वाले परिवारों को निजी स्कूलों में 25 % आरक्षित सीटें मिलती हैं।

चंदौली में संभावित प्रभाव

चंदौली जिले में सचिन कुमार, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने बताया, "विभाग का उद्देश्य अधिक से अधिक बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाना है। नए नियम से न केवल अभिभावकों को सहूलियत होगी बल्कि बच्चों को बेहतर विकल्प भी मिल सकेंगे।" पिछले साल केवल 1,200‑1,500 बच्चों को जगह मिली, जबकि कुल 3,000‑4,000 आवेदन थे। नई नीति के बाद, संभावित रूप से 2,500‑3,000 बच्चों को सीट मिल सकती है, यदि दूसरे वार्ड में स्थान उपलब्ध हों।

वर्तमान 2025 आरटीई प्रवेश प्रक्रिया

वर्तमान 2025 आरटीई प्रवेश प्रक्रिया

2025 के दूसरे चरण में 228 आवेदन दर्ज हुए, जो 227 निजी स्कूलों में उपलब्ध 1,671 आरक्षित सीटों में से 298 खाली सीटों को भरने के लिये था। दो चरण की पंजीकरण अवधि 1 जुलाई‑12 जुलाई 2025 तक रही, और दस्तावेज़ सत्यापन 19 जुलाई तक जारी रहा। लॉटरी 31 जुलाई को हुई, और परिणाम अगस्त में जारी किए गए, जिससे कई विद्यार्थियों की पढ़ाई देर से शुरू हो गई। पहले चरण में 1,453 छात्रों को चुना गया, पर उनमें से केवल 1,373 ने ही प्रवेश लिया, जिससे 298 सीटें फिर से खाली हुईं। अनुमान है कि दूसरे चरण के बाद भी लगभग 70 सीटें खाली रह जाएँगी, क्योंकि कुछ चुने हुए छात्र अंततः प्रवेश नहीं लेते।

विशेषज्ञों की राय और भविष्य की अपेक्षाएँ

शिक्षा नीति विशेषज्ञ डॉ. कमलेश सिंह (जैसे) कहते हैं, "क्रॉस‑वार्ड प्रवेश एक महत्वपूर्ण कदम है, पर इसका सफल कार्यान्वयन राज्य‑स्तर पर डेटा‑ड्रिवेन मॉनिटरिंग की माँग करता है।" वहीं, चंदौली के एक प्रधानाचार्य ने बताया कि "यदि अन्य वार्ड की स्कूलों में खाली सीटें हों, तो यह हमारे छात्रों को बेहतर सुविधाएँ दे सकता है, बशर्ते ट्रांसपोर्ट की समस्या को हल किया जाए।" विभाग ने कहा कि अगले दो साल में इस सुविधा का विस्तृत मूल्यांकन किया जाएगा, और यदि सकारात्मक परिणाम मिलते हैं तो इसे सभी शैक्षणिक सत्रों में स्थायी बनाया जाएगा।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्रॉस‑वार्ड प्रवेश का पहला लाभ कौन‑सा होगा?

पहला बड़ा लाभ यह है कि बच्चे अपने वार्ड में सीट न मिलने पर भी निकटवर्ती वार्ड के बेहतर स्कूलों में आवेदन कर सकते हैं, जिससे शिक्षा‑पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

क्या यह नियम सभी निजी स्कूलों पर लागू होगा?

हाँ, राज्य के सभी मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 % आरक्षित सीटें रहेंगे, और क्रॉस‑वार्ड विकल्प केवल उसी शर्त के साथ चलेगा कि स्थानीय वार्ड में कोई जगह न बची हो।

चंदौली में इस बदलाव से कितनी प्रतिशत बच्चों को फायदा होगा?

पूरे राज्य के औसत को देखते हुए, विशेषज्ञों का अनुमान है कि चंदौली में 70‑80 % अतिरिक्त आवेदनकर्ताओं को अब सीट मिल सकती है, जो पिछले 40‑50 % से बहुत बड़ा उछाल है।

नई नीति कब से लागू होगी?

यह नियम 2026‑27 शैक्षणिक सत्र से आधिकारिक तौर पर शुरू होगा, और पाँचवें चरण के दौरान ही काम करेगा।

यदि कोई बच्चा दूसरे वार्ड के स्कूल में चुना जाता है, तो ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कौन करेगा?

ट्रांसपोर्ट का खर्च अब तक अभिभावकों पर ही निर्भर रहेगा; हालांकि विभाग भविष्य में इस दिशा में सबसिडी या बस सेवा सपोर्ट पर विचार कर रहा है।

3 टिप्पणि

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    Sunil Kumar

    अक्तूबर 7, 2025 AT 05:10

    नई क्रॉस‑वार्ड नीति का आगमन उत्तर प्रदेश के शिक्षा परिदृश्य को जैसे ठंडी छतरी में समुद्री हवा जैसी ताज़गी देगा।
    अब माता‑पिता को इस बात का डर नहीं रहेगा कि उनका बच्चा स्थानीय वार्ड में सीट नहीं मिलने से पीछे रह जाएगा।
    यह व्यवस्था उन क्षेत्रों में खासकर काम करेगी जहाँ स्कूलों की क्षमता अधिक है पर वार्ड‑बाउंडरी कारण आवेदन लटके रहते हैं।
    जब सीटें खाली हों तो दूसरे वार्ड के बेहतर स्कूल में आवेदन करने की संभावना खुल जाएगी, यह एक वास्तविक विकल्प है।
    डेटा‑ड्रिवेन मॉनिटरिंग के बिना इस नीति की सफलता का दावा सिर्फ शब्दों की चमक है, लेकिन विभाग ने इसे लेकर आशावादी स्वर लिया है।
    यदि हम पिछले साल के आँकड़ों को देखें तो लगभग 60 % आवेदकों को निराशा का सामना करना पड़ा था।
    नई नीति के तहत इस अनुपात को आधे से भी कम करने की उम्मीद रखी जा रही है।
    लेकिन यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि ट्रांसपोर्ट की समस्या को हल किए बिना बच्चों को दूर के स्कूल तक ले जाना आसान नहीं होगा।
    राज्य को अब बस सेवा या सब्सिडी जैसी सहायक सुविधाएँ जोड़नी चाहिए, तभी यह कदम पूर्णतः प्रभावी हो सकेगा।
    साथ ही निजी स्कूलों में 25 % आरक्षित सीटों की उपस्थिति एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इसे यथार्थ में लागू करने के लिये पारदर्शी लॉटरी प्रक्रिया चाहिए।
    अगर स्थानीय वार्ड में पूरी तरह से सीटें समाप्त हो गईं तो पांचवें चरण की सक्रियता स्वाभाविक रूप से तेज़ होगी।
    इस दौरान अभिभावकों को सही दस्तावेज़ और समय सीमा का पालन करना पड़ेगा, नहीं तो उनका आवेदन बिन कारण खारिज हो सकता है।
    विशेषज्ञों ने कहा है कि इस नीति का मूल्यांकन दो साल बाद किया जाएगा, जिससे आगे की सुधार योजना बन सकेगी।
    कुल मिलाकर, यह पहल एक दिशा में कदम है, पर इसकी सफलता बहुत हद तक क्रियान्वयन की सटीकता पर निर्भर करेगी।
    फिर भी, आशा है कि आने वाले शैक्षणिक सत्र में हमारा दर्जा बेहतर होगा और बच्चों को बेहतर अवसर मिलेंगे।

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    Rajnish Swaroop Azad

    अक्तूबर 7, 2025 AT 05:43

    हर सीमा के पीछे एक मौका छुपा होता है।
    शिक्षा वही ढूँढती है जहाँ चलन नहीं ठहरता।
    इसलिए नई नीति एक कदम है।

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    bhavna bhedi

    अक्तूबर 7, 2025 AT 07:06

    यह नीति वास्तव में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच शैक्षणिक असमानता को घटाने में सहायक हो सकती है।
    अभिभावकों को अब अपने बच्चों के भविष्य के लिए अधिक विकल्प मिलेंगे।
    प्रशासनिक प्रक्रिया को सुगम बनाना आवश्यक है ताकि सभी योग्य छात्र लाभ उठा सकें

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