जब उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग ने 18 सितंबर 2025 को घोषणा की, तो कई माता‑पिता का चेहरा हल्का हो गया; अब उनका बच्चा अपने वार्ड से बाहर के स्कूल में भी दाखिला ले सकता है। इस नए नियम को 2026‑27 शैक्षणिक सत्र से लागू किया जाएगा, और इससे राज्य‑भर में लाखों बच्चों की शिक्षा‑पहुंच में बड़ा बदलाव आएगा।
पहले आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के तहत बच्चा केवल उसी वार्ड के स्कूल में ही आवेदन कर सकता था जहाँ उसका घर स्थित था। यह प्रतिबंध हर साल हजारों आवेदन को अस्वीकार करने का कारण बना। लखनऊ में रिपोर्टिंग के अनुसार, 2025 के शुरुआती चरण में 3,000‑4,000 आवेदन आते थे, पर केवल 1,200‑1,500 बच्चों को ही जगह मिल पाती थी। बाकी सभी को वार्ड‑सीमा के कारण खारिज कर दिया जाता था।
नई व्यवस्था में आवेदक तब ही दूसरे वार्ड के स्कूल में आवेदन कर सकेगा जब अपने वार्ड में सीटें खाली न हों और दूसरे वार्ड में खाली सीट उपलब्ध हो। यह सुविधा पाँचवें चरण में सक्रिय होगी, जिसमें पहले चार चरण में स्थानीय वार्ड की सीटें समाप्त हो चुकी होंगी। विभाग ने बताया कि इस बदलाव से न केवल अभिभावकों को सुविधा होगी, बल्कि बच्चों को बेहतर शैक्षणिक विकल्प भी मिलेंगे।
चंदौली जिले में सचिन कुमार, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने बताया, "विभाग का उद्देश्य अधिक से अधिक बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाना है। नए नियम से न केवल अभिभावकों को सहूलियत होगी बल्कि बच्चों को बेहतर विकल्प भी मिल सकेंगे।" पिछले साल केवल 1,200‑1,500 बच्चों को जगह मिली, जबकि कुल 3,000‑4,000 आवेदन थे। नई नीति के बाद, संभावित रूप से 2,500‑3,000 बच्चों को सीट मिल सकती है, यदि दूसरे वार्ड में स्थान उपलब्ध हों।
2025 के दूसरे चरण में 228 आवेदन दर्ज हुए, जो 227 निजी स्कूलों में उपलब्ध 1,671 आरक्षित सीटों में से 298 खाली सीटों को भरने के लिये था। दो चरण की पंजीकरण अवधि 1 जुलाई‑12 जुलाई 2025 तक रही, और दस्तावेज़ सत्यापन 19 जुलाई तक जारी रहा। लॉटरी 31 जुलाई को हुई, और परिणाम अगस्त में जारी किए गए, जिससे कई विद्यार्थियों की पढ़ाई देर से शुरू हो गई। पहले चरण में 1,453 छात्रों को चुना गया, पर उनमें से केवल 1,373 ने ही प्रवेश लिया, जिससे 298 सीटें फिर से खाली हुईं। अनुमान है कि दूसरे चरण के बाद भी लगभग 70 सीटें खाली रह जाएँगी, क्योंकि कुछ चुने हुए छात्र अंततः प्रवेश नहीं लेते।
शिक्षा नीति विशेषज्ञ डॉ. कमलेश सिंह (जैसे) कहते हैं, "क्रॉस‑वार्ड प्रवेश एक महत्वपूर्ण कदम है, पर इसका सफल कार्यान्वयन राज्य‑स्तर पर डेटा‑ड्रिवेन मॉनिटरिंग की माँग करता है।" वहीं, चंदौली के एक प्रधानाचार्य ने बताया कि "यदि अन्य वार्ड की स्कूलों में खाली सीटें हों, तो यह हमारे छात्रों को बेहतर सुविधाएँ दे सकता है, बशर्ते ट्रांसपोर्ट की समस्या को हल किया जाए।" विभाग ने कहा कि अगले दो साल में इस सुविधा का विस्तृत मूल्यांकन किया जाएगा, और यदि सकारात्मक परिणाम मिलते हैं तो इसे सभी शैक्षणिक सत्रों में स्थायी बनाया जाएगा।
पहला बड़ा लाभ यह है कि बच्चे अपने वार्ड में सीट न मिलने पर भी निकटवर्ती वार्ड के बेहतर स्कूलों में आवेदन कर सकते हैं, जिससे शिक्षा‑पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
हाँ, राज्य के सभी मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 % आरक्षित सीटें रहेंगे, और क्रॉस‑वार्ड विकल्प केवल उसी शर्त के साथ चलेगा कि स्थानीय वार्ड में कोई जगह न बची हो।
पूरे राज्य के औसत को देखते हुए, विशेषज्ञों का अनुमान है कि चंदौली में 70‑80 % अतिरिक्त आवेदनकर्ताओं को अब सीट मिल सकती है, जो पिछले 40‑50 % से बहुत बड़ा उछाल है।
यह नियम 2026‑27 शैक्षणिक सत्र से आधिकारिक तौर पर शुरू होगा, और पाँचवें चरण के दौरान ही काम करेगा।
ट्रांसपोर्ट का खर्च अब तक अभिभावकों पर ही निर्भर रहेगा; हालांकि विभाग भविष्य में इस दिशा में सबसिडी या बस सेवा सपोर्ट पर विचार कर रहा है।
Sunil Kumar
अक्तूबर 7, 2025 AT 05:10नई क्रॉस‑वार्ड नीति का आगमन उत्तर प्रदेश के शिक्षा परिदृश्य को जैसे ठंडी छतरी में समुद्री हवा जैसी ताज़गी देगा।
अब माता‑पिता को इस बात का डर नहीं रहेगा कि उनका बच्चा स्थानीय वार्ड में सीट नहीं मिलने से पीछे रह जाएगा।
यह व्यवस्था उन क्षेत्रों में खासकर काम करेगी जहाँ स्कूलों की क्षमता अधिक है पर वार्ड‑बाउंडरी कारण आवेदन लटके रहते हैं।
जब सीटें खाली हों तो दूसरे वार्ड के बेहतर स्कूल में आवेदन करने की संभावना खुल जाएगी, यह एक वास्तविक विकल्प है।
डेटा‑ड्रिवेन मॉनिटरिंग के बिना इस नीति की सफलता का दावा सिर्फ शब्दों की चमक है, लेकिन विभाग ने इसे लेकर आशावादी स्वर लिया है।
यदि हम पिछले साल के आँकड़ों को देखें तो लगभग 60 % आवेदकों को निराशा का सामना करना पड़ा था।
नई नीति के तहत इस अनुपात को आधे से भी कम करने की उम्मीद रखी जा रही है।
लेकिन यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि ट्रांसपोर्ट की समस्या को हल किए बिना बच्चों को दूर के स्कूल तक ले जाना आसान नहीं होगा।
राज्य को अब बस सेवा या सब्सिडी जैसी सहायक सुविधाएँ जोड़नी चाहिए, तभी यह कदम पूर्णतः प्रभावी हो सकेगा।
साथ ही निजी स्कूलों में 25 % आरक्षित सीटों की उपस्थिति एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इसे यथार्थ में लागू करने के लिये पारदर्शी लॉटरी प्रक्रिया चाहिए।
अगर स्थानीय वार्ड में पूरी तरह से सीटें समाप्त हो गईं तो पांचवें चरण की सक्रियता स्वाभाविक रूप से तेज़ होगी।
इस दौरान अभिभावकों को सही दस्तावेज़ और समय सीमा का पालन करना पड़ेगा, नहीं तो उनका आवेदन बिन कारण खारिज हो सकता है।
विशेषज्ञों ने कहा है कि इस नीति का मूल्यांकन दो साल बाद किया जाएगा, जिससे आगे की सुधार योजना बन सकेगी।
कुल मिलाकर, यह पहल एक दिशा में कदम है, पर इसकी सफलता बहुत हद तक क्रियान्वयन की सटीकता पर निर्भर करेगी।
फिर भी, आशा है कि आने वाले शैक्षणिक सत्र में हमारा दर्जा बेहतर होगा और बच्चों को बेहतर अवसर मिलेंगे।
Rajnish Swaroop Azad
अक्तूबर 7, 2025 AT 05:43हर सीमा के पीछे एक मौका छुपा होता है।
शिक्षा वही ढूँढती है जहाँ चलन नहीं ठहरता।
इसलिए नई नीति एक कदम है।
bhavna bhedi
अक्तूबर 7, 2025 AT 07:06यह नीति वास्तव में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच शैक्षणिक असमानता को घटाने में सहायक हो सकती है।
अभिभावकों को अब अपने बच्चों के भविष्य के लिए अधिक विकल्प मिलेंगे।
प्रशासनिक प्रक्रिया को सुगम बनाना आवश्यक है ताकि सभी योग्य छात्र लाभ उठा सकें
jyoti igobymyfirstname
अक्तूबर 7, 2025 AT 09:53ओ भाई ये नया नियम तो लाखों का नायक बन गया है।
लेकिन ट्रांसपोर्ट की समस्या तो जलस्राव जैसी रहेगी।
स्कूल तक दूर तक सफर करना बच्चों को थका देगा।
क्या ये सब ठीक रहेगा? सुनो सुनो, सबको एक बार फिर से देखना पड़ेगा।
Aanchal Talwar
अक्तूबर 7, 2025 AT 10:26सच में यह बदलाव बड़ा ही आशादायक है पर ट्रांस्पोर्ट की व्यवस्था को लेकर अभी भी कई सवाल है।
हमें उम्मीद है कि विभाग जल्दी ही इस पर कारगर समाधान निकालेगा।
Abhishek Agrawal
अक्तूबर 7, 2025 AT 12:40यह नीति तो कागज़ की बात तो है, लेकिन वास्तविकता में कई बाधाएँ हैं, जैसे कि दस्तावेज़ीकरण की जटिलता, स्कूलों की अव्यवस्थित सूची, तथा ट्रांसपोर्ट की लागत, जो आम जनता को भारित करती है, और इसके बिना क्रॉस‑वार्ड प्रवेश का कोई अर्थ नहीं बनता।
Vishal Kumar Vaswani
अक्तूबर 7, 2025 AT 14:03क्या आपको नहीं लगता कि इस नई नीति के पीछे कोई बड़ी ताकत छिपी है? 🤔 शायद बड़े शिक्षा व्यापारियों की मदद से यह नियम बनाया गया है, ताकि वे अपने प्रॉफिट को बढ़ा सकें। 🚨 सरकार के आधिकारिक बयान पर भरोसा करना मुश्किल है। 📚
Zoya Malik
अक्तूबर 7, 2025 AT 15:26ऐसी नीति केवल अभिभावकों के झुंझलाहट को धूमिल करने की कोशिश है।
Raja Rajan
अक्तूबर 7, 2025 AT 18:13वास्तव में, नीति का प्रभाव डेटा के बिना मात्र अनुमान ही रह जाएगा।
Atish Gupta
अक्तूबर 7, 2025 AT 19:36क्रॉस‑वार्ड एंट्री मॉड्यूल को इम्प्लीमेंट करने के लिए प्रोटोकॉल एन्हांसमेंट नीड्स इन ऑप्टिमाइज़्ड एल्गॉरिद्म्स, एन्हांस्ड डेटा एग्रीगेशन और स्केलेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर।
इसके बिना सिस्टम लचीला नहीं रहेगा, और सर्विस लेवल एग्रीमेंट उल्लंघन होगा।
इसलिए इस पहल को स्ट्रैटेजिक इंटीग्रेशन के साथ रोल‑आउट करना आवश्यक है।
Neha Shetty
अक्तूबर 7, 2025 AT 22:23आपके विचार सही दिशा में हैं, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसपोर्ट की कमी को दूर करने के लिए स्थानीय निकायों को सक्रिय होना पड़ेगा।
साथ ही, स्कूलों की क्षमताओं का वास्तविक आंकलन किया जाना चाहिए, ताकि खाली सीटों का सही उपयोग हो सके।
हम सब मिलकर इस प्रक्रिया को सफल बनाने में योगदान दे सकते हैं।
Ashish Singh
अक्तूबर 7, 2025 AT 23:46यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा रणनीति के अनुरूप है, जो सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने का मूल सिद्धांत रखती है।
राष्ट्र की प्रगति हेतु प्रत्येक बालिक और बालक को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँचाना अनिवार्य है।
इसलिए इस नियमन को पूरी शक्ति के साथ लागू किया जाना चाहिए।