जब अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा ने 8 अक्टूबर 2025 को अपना आधिकारिक ईमेल बदल दिया, तो यह सिर्फ एक व्यक्तिगत कदम नहीं रहा। उन्होंने नई पहचान [email protected] को अपनाते हुए ज़ोहो कॉरपोरेशन की स्वदेशी ईमेल सेवा जोहो मेल पर स्विच किया, और इस बात को नरेंद्र मोदी की ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘स्वदेशी डिजिटल’ पहल के संग जोड़ते हुए बताया, “डाटा की सुरक्षा और राष्ट्रीय हित हमारे लिए प्राथमिकता है।” इस बदलाव की घोषणा अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय रेल मंत्री, ने पहले भी की थी, इसलिए यह कोई नया प्रयोग नहीं, बल्कि एक बढ़ते प्रवृत्ति का हिस्सा है।
पिछले साल से ही कई वरिष्ठ मंत्री डिजिटल कार्यों में स्वदेशी टूल्स को अपनाने की आवाज़ बुलंद कर रहे थे। सितंबर 2025 में, अश्विनी वैष्णव ने आधिकारिक ईमेल को भी ज़ोहो मेल पर बदलने की बात कही थी, जबकि शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में ज़ोहो की दक्षता की सराहना की। इन सभी कदमों के पीछे एक ही लक्ष्य है – अमेरिकी‑आधारित प्लेटफ़ॉर्म की निर्भरता घटाना और भारतीय तकनीकी कंपनियों को बूस्ट देना।
क्या आप जानते हैं कि जोहो मेल के पीछे कौन‑सी टेक्नोलॉजी छिपी है? नीचे कुछ प्रमुख फीचर्स की सूची दी गई है, जो इसे सरकारी उपयोग के लिये उपयुक्त बनाती हैं:
इन सुविधाओं को विकसित करने वाली कंपनी का मुख्यालय चेन्नई, तमिलनाडु में स्थित है। 1996 में सीदार्थ वेन्कटरमन और वी श्रीनिवासन ने ज़ोहो को स्थापित किया, और आज यह भारतीय स्टार्ट‑अप इकोसिस्टम में एक मापदण्ड बन चुका है।
अमित शाह ने अपनी ट्विटर‑जैसी पोस्ट में लिखा, “मैंने जोहो मेल पर स्विच कर लिया है। कृपया मेरे नए ईमेल पते पर ही पत्राचार करें। आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।” इस छोटे लेकिन महत्वपूर्ण घोषणा पर कई आईटी विशेषज्ञों ने टिप्पणी की। “सरकारी स्तर पर स्वदेशी प्लेटफ़ॉर्म अपनाना डेटा सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय गर्व को भी बढ़ाता है,” एक विशेषज्ञ ने कहा। वहीं, कुछ विरोधी दलों ने इस कदम को राजनीति का उपकरण कह कर चुनौती दी, यह दर्शाते हुए कि डिजिटल सॉल्यूशन का चयन भी चुनावी संकेत बन सकता है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में ‘डिजिटल इंडिया’ के साथ-साथ ‘स्वदेशी तकनीक’ की पुकार उठाई, तो कई सरकारी विभागों ने उसी दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया। ज़ोहो मेल जैसे उत्पादों का अपनाना न केवल अमेरिकी‑भारतीय तकनीकी मध्यस्थता को कम करता है, बल्कि देशी स्टार्ट‑अप्स के लिए फंडिंग और मार्केट एक्सेस के नए द्वार खोलता है। अगर आगे चलकर सभी मंत्रालय अपने आधिकारिक ईमेल को स्वदेशी सेवाओं पर ले जाएँ, तो संभावित बचत करोड़ों में होगी, और डेटा स्थानीय संस्थानों के पास रहेगा।
बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि अगले दो सालों में कम से कम पाँच और केंद्र स्तर के मंत्रालय ज़ोहो मेल या समान स्वदेशी सेवाओं पर स्विच कर सकते हैं। इसके साथ ही, ज़ोहो ने हाल ही में ‘ज़ोहो अराटाई’ नामक नया मैसेजिंग ऐप लॉन्च किया है, जिसका लक्ष्य व्हाट्सएप जैसे विदेशी ऐप्स को चुनौती देना है। इस दिशा में सरकारी समर्थन मिलने से भारतीय तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु‑परिस्थितिकीय लाभ भी मिलेगा, क्योंकि डेटा केंद्रों के स्थानीयकरण से ऊर्जा खपत में कमी आ सकती है।
नए पते [email protected] में सरकारी डोमेन शामिल है, जिससे आधिकारिक संवाद सुरक्षित और पारदर्शी रहता है। साथ ही, यह स्वदेशी सेवा पर स्विच करने के कारण राष्ट्रीय डेटा सुरक्षा नीति के अनुरूप है।
एंड‑टू‑एंड एन्क्रिप्शन, विज्ञापन‑मुक्त इंटरफ़ेस और स्थानीय डेटा केंद्रों के कारण ज़ोहो मेल डेटा लीक का जोखिम घटाता है। यह स्वदेशी उत्पाद भी भारतीय आईटी स्टार्ट‑अप्स को आर्थिक समर्थन देता है।
हाँ, पिछले महीनों में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी इसी दिशा में कदम रखा है। विश्लेषकों का मानना है कि अगले दो सालों में कम से कम पाँच मंत्रालय इस सेवा को अपनाएँगे।
चेन्नई में स्थित मुख्यालय अनुसंधान, विकास और डेटा हब का केंद्र है। यहाँ से ज़ोहो के सभी क्लाउड सेवाएँ और सुरक्षा अपडेट जारी होते हैं, जो स्थानीय नियामक मानकों के अनुरूप होते हैं।
इस पहल का उद्देश्य विदेशी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता घटाना, राष्ट्रीय डेटा सुरक्षा को मजबूत करना और भारतीय स्टार्ट‑अप इकोसिस्टम को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाना है। यह कदम आर्थिक आत्मनिर्भरता और साइबर‑सुरक्षा दोनों को सुदृढ़ करता है।
sakshi singh
अक्तूबर 8, 2025 AT 23:47डेटा सुरक्षा को लेकर सरकार ने जो decisive कदम उठाया है वह उल्लेखनीय है।
जोहो मेल की एन्ड‑टू‑एन्ड एन्क्रिप्शन की वजह से संवेदनशील जानकारी अब बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रहती है।
यह बदलाव सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान को भी उभारता है।
कई मंत्रालयों ने पहले ही इस दिशा में कदम रखा है और परिणामस्वरूप संचालन में बहुत कमी आई है।
अभ्यर्थियों और नागरिकों को अब सुनिश्चित होना चाहिए कि उनका संवाद सरकारी स्रोतों में ही रहता है।
स्वदेशी प्लेटफ़ॉर्म के प्रयोग से विदेशी कंपनियों पर आर्थिक निर्भरता भी घटती है।
इस प्रक्रिया में छोटे‑छोटे स्टार्ट‑अप्स को भी निवेश का अवसर मिलता है।
स्थानीय डेटा सेंटरों के कारण लेटेंसी कम होती है और सेवा की गति बढ़ती है।
जब केंद्र स्तर पर ऐसा सकारात्मक परिवर्तन देखा जाता है तो राज्य स्तर पर अनुकूलन तेज़ी से हो सकता है।
सुरक्षा लेखकों ने भी इस इंटीग्रेशन को तकनीकी दृष्टि से सराहा है।
भविष्य में अगर सभी मंत्रालय इस मॉडल को अपनाएँ तो करोड़ों रुपये की बचत की संभावना है।
साथ ही, डेटा स्थानीयकृत होने से डेटा‑सर्वर की ऊर्जा खपत में भी कमी आएगी।
इस प्रकार का कदम डिजिटल आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को साकार करने में मददगार साबित होता है।
जनता को भी इस दिशा में जागरूक होना चाहिए और अपने अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
अंत में, यह पहल तकनीकी विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को साथ लेकर चलती दिखती है।