शांतनु नायडू, केवल 31 वर्ष की उम्र में, भारत के प्रमुख व्यवसायी रतन टाटा के सबसे विश्वासपात्र सहयोगियों में से एक बन गए हैं। रतन टाटा, जिन्होंने टाटा संस के अध्यक्ष एमेरिटस के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी है, उनके जीवन में शांतनु का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस रिश्ते की शुरुआत 2018 में हुई, जब नायडू एक फोन कॉल पर टाटा के इनर सर्कल में शामिल हो गए। नायडू, पहली बार तब चर्चा में आए जब उनका एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह टाटा का जन्मदिन मना रहे थे।
पुणे में जन्मे और वहीं पले-बढ़े शांतनु नायडू की शिक्षा पुणे यूनिवर्सिटी में हुई, जहां उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के रूप में की थी। यहीं पर उन्होंने एक महत्वपूर्ण परियोजना शुरू की, जिसका उद्देश्य सड़कों पर आवारा कुत्तों को दुर्घटनाओं से बचाना था। उन्होंने ड्राइवरों को रात में कुत्तों को देखने में सक्षम बनाने के लिए परावर्तक कॉलर डिज़ाइन किए।
शांतनु की यह पहल, जहां परावर्तक कॉलर के माध्यम से कुत्तों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई, रतन टाटा के लिए एक प्रेरणादायक कार्य बन गया। टाटा स्वयं कुत्तों से प्रेम करने वाले व्यक्ति हैं, और इस कारण नायडू का पत्र उन्हें उल्लेखनीय प्रतीत हुआ। यह उनकी मित्रता की शुरुआत थी। इस बैठक के बाद, न केवल एक पेशेवर लागडर, बल्कि एक गहरी व्यक्तिगत बंधन विकसित हुआ।
व्यवसाय के साथ, शांतनु नायडू ने एक सामाजिक उद्यम भी शुरू किया जिसे 'गुडफेलोज' नाम से जाना जाता है। यह स्टार्ट-अप उन बुजुर्ग नागरिकों के लिए साथी सेवाएं प्रदान करता है जो अकेलेपन का सामना कर रहे हैं। अनुमानित ₹5 करोड़ की वैल्यू वाली इस कंपनी का उद्देश्य बुजुर्ग लोगों के जीवन में खुशी और साहचर्य लाना है। इस उद्यम को रतन टाटा का समर्थन प्राप्त है, जिन्होंने इसमें निवेश कर इसे अपनी स्वीकृति दी।
शांतनु नायडू के जीवन की यात्रा नवाचार, उद्यमिता और दृढ़ संकल्प की अनूठी गाथा है। उनकी कहानी यह साबित करती है कि कैसे नवाचार और जुनून के माध्यम से संबंध और अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। व्यापार जगत में उनकी उपलब्धियों के अलावा, उनका मानवीय दृष्टिकोण और सामाजिक जवाबदेही उन्हें विशेष बनाता है। युवा पीढ़ी के लिए, शांतनु की कहानी उद्यमिता की ओर एक नई दृष्टि प्रदान करती है, जिसमें व्यापार मात्र लाभ अर्जन का साधन नहीं बल्कि समाज की सेवा का माध्यम भी है।
शांतनु नायडू टाटा समूह और उसके बाहर दोनों ही में अपनी पहचान बना रहे हैं। वे परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं और उनकी यात्रा केवल शुरुआत है।