शांतनु नायडू: रतन टाटा के विश्वास और मित्रता से युवा जनरल मैनेजर

10 अक्तूबर 2024
शांतनु नायडू: रतन टाटा के विश्वास और मित्रता से युवा जनरल मैनेजर

शांतनु नायडू और टाटा की अनोखी कहानी

शांतनु नायडू, केवल 31 वर्ष की उम्र में, भारत के प्रमुख व्यवसायी रतन टाटा के सबसे विश्वासपात्र सहयोगियों में से एक बन गए हैं। रतन टाटा, जिन्होंने टाटा संस के अध्यक्ष एमेरिटस के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी है, उनके जीवन में शांतनु का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस रिश्ते की शुरुआत 2018 में हुई, जब नायडू एक फोन कॉल पर टाटा के इनर सर्कल में शामिल हो गए। नायडू, पहली बार तब चर्चा में आए जब उनका एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह टाटा का जन्मदिन मना रहे थे।

एक युवा इंजीनियर की कहानी

पुणे में जन्मे और वहीं पले-बढ़े शांतनु नायडू की शिक्षा पुणे यूनिवर्सिटी में हुई, जहां उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के रूप में की थी। यहीं पर उन्होंने एक महत्वपूर्ण परियोजना शुरू की, जिसका उद्देश्य सड़कों पर आवारा कुत्तों को दुर्घटनाओं से बचाना था। उन्होंने ड्राइवरों को रात में कुत्तों को देखने में सक्षम बनाने के लिए परावर्तक कॉलर डिज़ाइन किए।

उत्साहवर्धक पहल की शुरुआत

शांतनु की यह पहल, जहां परावर्तक कॉलर के माध्यम से कुत्तों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई, रतन टाटा के लिए एक प्रेरणादायक कार्य बन गया। टाटा स्वयं कुत्तों से प्रेम करने वाले व्यक्ति हैं, और इस कारण नायडू का पत्र उन्हें उल्लेखनीय प्रतीत हुआ। यह उनकी मित्रता की शुरुआत थी। इस बैठक के बाद, न केवल एक पेशेवर लागडर, बल्कि एक गहरी व्यक्तिगत बंधन विकसित हुआ।

गुडफेलोज: बुजुर्गों के लिए साथी सेवा

व्यवसाय के साथ, शांतनु नायडू ने एक सामाजिक उद्यम भी शुरू किया जिसे 'गुडफेलोज' नाम से जाना जाता है। यह स्टार्ट-अप उन बुजुर्ग नागरिकों के लिए साथी सेवाएं प्रदान करता है जो अकेलेपन का सामना कर रहे हैं। अनुमानित ₹5 करोड़ की वैल्यू वाली इस कंपनी का उद्देश्य बुजुर्ग लोगों के जीवन में खुशी और साहचर्य लाना है। इस उद्यम को रतन टाटा का समर्थन प्राप्त है, जिन्होंने इसमें निवेश कर इसे अपनी स्वीकृति दी।

प्रेरणादायक यात्रा और भविष्य की दृष्टि

शांतनु नायडू के जीवन की यात्रा नवाचार, उद्यमिता और दृढ़ संकल्प की अनूठी गाथा है। उनकी कहानी यह साबित करती है कि कैसे नवाचार और जुनून के माध्यम से संबंध और अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। व्यापार जगत में उनकी उपलब्धियों के अलावा, उनका मानवीय दृष्टिकोण और सामाजिक जवाबदेही उन्हें विशेष बनाता है। युवा पीढ़ी के लिए, शांतनु की कहानी उद्यमिता की ओर एक नई दृष्टि प्रदान करती है, जिसमें व्यापार मात्र लाभ अर्जन का साधन नहीं बल्कि समाज की सेवा का माध्यम भी है।

शांतनु नायडू टाटा समूह और उसके बाहर दोनों ही में अपनी पहचान बना रहे हैं। वे परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं और उनकी यात्रा केवल शुरुआत है।

13 टिप्पणि

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    Shailendra Thakur

    अक्तूबर 11, 2024 AT 09:38
    ये कहानी सच में दिल को छू गई। एक युवा इंजीनियर जो कुत्तों की रक्षा के लिए काम कर रहा है, और फिर बुजुर्गों के लिए साथी बन गया। ये ही असली नवाचार है।
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    vinoba prinson

    अक्तूबर 11, 2024 AT 12:03
    अरे भाई, ये सब तो बहुत सुंदर कहानी है लेकिन असल में क्या हो रहा है? टाटा समूह के लिए PR कैंपेन है या असली प्रेरणा? मैंने इस तरह की कहानियाँ बहुत सुनी हैं जो बस बड़े लोगों के नाम से बनाई जाती हैं।
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    Sumeet M.

    अक्तूबर 13, 2024 AT 00:43
    अरे ये सब बकवास है! हमारे देश में इतने सारे गरीब बच्चे हैं जिनके पास खाने को नहीं है, और ये लोग कुत्तों के लिए कॉलर बना रहे हैं? ये तो बस नाटक है! भारत की समस्याएँ तो इतनी बड़ी हैं कि इन चीजों पर पैसा बर्बाद करना बेकार है!!!
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    Kisna Patil

    अक्तूबर 13, 2024 AT 11:38
    ये जो समाज सेवा का नया दृष्टिकोण है, ये वाकई देश के लिए आशा की किरण है। युवाओं को इस तरह के मिशन से जोड़ना होगा, न कि सिर्फ नौकरी के लिए। ये जो शांतनु ने किया, वो बस शुरुआत है।
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    Muneendra Sharma

    अक्तूबर 14, 2024 AT 14:06
    मैंने इस परावर्तक कॉलर की बात सुनी थी, लेकिन नहीं जानता था कि ये शांतनु ने बनाया था। ये तो बहुत छोटी सी चीज है लेकिन इसका असर बहुत बड़ा है। कुत्तों को बचाना और बुजुर्गों को अकेलेपन से बचाना, दोनों ही एक ही दिल की बात है।
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    Rajveer Singh

    अक्तूबर 16, 2024 AT 04:47
    हमारे देश में इतने बड़े नेता हैं जो देश के लिए जी रहे हैं, लेकिन इन लोगों को बस टाटा के साथ फोटो लेने का मौका मिल जाता है और वो वायरल हो जाते हैं। ये सब बस इंस्टाग्राम की कहानी है। असली देशभक्ति तो वो है जो गाँव में स्कूल बनाता है या सड़क पर बच्चों को पढ़ाता है।
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    Anand Itagi

    अक्तूबर 17, 2024 AT 03:50
    मुझे लगता है ये बहुत अच्छी बात है कि एक युवा इंजीनियर इतनी बड़ी चीज कर रहा है और टाटा भी उसका समर्थन कर रहे हैं। अगर ऐसे लोग बढ़ेंगे तो भारत बदल जाएगा। बस थोड़ा और धैर्य रखें और देखें कि ये बातें कैसे बढ़ती हैं
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    Ashmeet Kaur

    अक्तूबर 17, 2024 AT 21:42
    मैं एक गाँव से हूँ, वहाँ बुजुर्ग अकेले रहते हैं, और कुत्ते भी बहुत हैं। ये परावर्तक कॉलर और गुडफेलोज जैसी चीजें वहाँ बहुत काम आएंगी। अगर ये बात गाँवों तक पहुँच जाए तो ये वाकई एक आंदोलन बन जाएगा।
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    Sahil Kapila

    अक्तूबर 18, 2024 AT 07:11
    ये सब बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये टाटा समूह के लिए बस एक ब्रांडिंग ट्रिक है? एक युवा इंजीनियर को उठाकर उसे रतन टाटा के साथ जोड़ दिया जाता है और फिर वो वायरल हो जाता है। ये तो बस एक बड़ा मार्केटिंग गेम है
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    ASHOK BANJARA

    अक्तूबर 19, 2024 AT 01:11
    हम सब जीवन में एक ऐसा अवसर चाहते हैं जो हमें बदल दे। शांतनु ने एक छोटी सी चीज से शुरुआत की और वो अपने दिल की आवाज़ को सुना। ये बताता है कि बड़ी चीजें छोटे कदमों से शुरू होती हैं। टाटा ने उसे सुना, और इस तरह एक रिश्ता बना। ये कोई प्रोफेशनल लिंक नहीं, ये इंसानी जुड़ाव है।
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    Ankit Meshram

    अक्तूबर 19, 2024 AT 11:56
    ये बहुत अच्छा है।
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    Shaik Rafi

    अक्तूबर 20, 2024 AT 19:24
    इस कहानी में एक गहरा संदेश है। जब हम अपने छोटे कामों को दिल से करते हैं, तो वो बड़े लोगों को भी प्रभावित कर देते हैं। ये शांतनु की बात नहीं, ये हर उस युवा की बात है जो बदलाव चाहता है और शुरुआत कर देता है।
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    Nirmal Kumar

    अक्तूबर 21, 2024 AT 23:29
    शांतनु के इस काम को देखकर लगता है कि भारत की युवा पीढ़ी बदल रही है। न केवल तकनीकी ज्ञान, बल्कि इंसानियत का ज्ञान भी विकसित हो रहा है। ये जो गुडफेलोज है, वो एक नया मॉडल है। अगर ये सब राष्ट्रीय स्तर पर फैल जाए तो भारत का भविष्य बहुत अलग होगा।

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