Navratri 2025 रंग गाइड: माँ दुर्गा के 9 दिव्य रंगों का महत्व

23 सितंबर 2025
Navratri 2025 रंग गाइड: माँ दुर्गा के 9 दिव्य रंगों का महत्व

Navratri 2025 में रंगों का आध्यात्मिक महत्व

डूबर-डूबर नाच, धाम-धूमधाम और दहकों के साथ आने वाले Navratri 2025 की थाली में Navratri 2025 रंग का विशेष स्थान है। हर दिन माँ दुर्गा के अलग रूप की पूजा होती है और साथ ही एक निश्चित रंग को धारण किया जाता है, जो प्रतिज्ञा, ऊर्जा और आशीर्वाद को बढ़ाता है। इस परम्परा न केवल धार्मिक भावना को सशक्त बनाती है, बल्कि मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करती है।

रंगों की शक्ति को वैज्ञानिक भी मान्यता दे रहे हैं; वे मनोदशा, हार्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर पर असर डालते हैं। इसलिए जब भक्त इन विशेष रंगों को पहनते हैं तो वे अपने अंदर की शुद्धता, उत्साह तथा शांति को बाहरी रूप में प्रतिबिंबित कर पाते हैं।

प्रत्येक दिन का रंग और उसका प्रतीकात्मक अर्थ

प्रत्येक दिन का रंग और उसका प्रतीकात्मक अर्थ

नीचे नौ दिन के रंगों की सूची दी गई है, जिसमें उनके आध्यात्मिक प्रभाव और पहनने के तरीके भी बताए गए हैं:

  • दिन 1 – 22 सितम्बर (सप्ताह) – सफ़ेद (शैलपुत्री): शुद्धि, शांति और निरंतरता का प्रतीक। सफ़ेद कपड़े पहनने से मन को शांति मिलती है और दिव्य ऊर्जा को आकर्षित किया जाता है।
  • दिन 2 – 23 सितम्बर (मंगल) – लाल (ब्रह्मचारिणी): प्रेम, ऊर्जा और सक्रियता का रंग। लाल पोशाक से उत्साह बढ़ता है और भक्त की भक्ति प्रबल होती है।
  • दिन 3 – 24 सितम्बर (बुध) – रॉयल ब्लू (चंद्रघंटा): समृद्धि, शान्ति और गंभीरता का प्रतिनिधित्व। गहरा नीला पहनने से मन स्थिर रहता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • दिन 4 – 25 सितम्बर (गुरु) – पीला (कुशमांडा): आशा, उज्ज्वलता और ज्ञान का रंग। पीले वस्त्र से सकारात्मक सोच विकसित होती है और अज्ञानता पर प्रकाश पड़ता है।
  • दिन 5 – 26 सितम्बर (शुक्र) – हरा (स्कंदमाता): विकास, शांति और माँत्व का प्रतीक। हरे रंग से घर में शांति और समृद्धि आती है।
  • दिन 6 – 27 सितम्बर (शनि) – ग्रे (कट्यायनी): संतुलन, स्थिरता और निरपेक्षता। ग्रे पहनने से भावनाओं में संतुलन बना रहता है और बुराई से लड़ने की शक्ति मिलती है।
  • दिन 7 – 28 सितम्बर (रवि) – नारंगी (कालरात्रि): उत्साह, रचनात्मकता और आध्यात्मिक जागृति। नारंगी रंग नकारात्मकता को दूर करता है और परिवर्तन लाता है।
  • दिन 8 – 29 सितम्बर (सोम) – मोतिया हरा (महा गौरी): विशिष्टता, पुनर्जन्म और करुणा। इस अनोखे हरे रंग से माँ की दया और नवीनीकरण का अनुभव होता है।
  • दिन 9 – 30 सितम्बर (मंगल) – गुलाब (सिद्धिदात्रि): प्रेम, सहानुभूति और अद्भुत शक्तियों का रंग। गुलाबी पोशाक से सुख, शांति और इच्छाओं का पूर्णत्व मिलता है।

इन रंगों को पहनते समय साधारण कपड़े, साड़ी, लहंगा या चूड़ीदार पूजारी पोशाक का चयन किया जा सकता है। साथ ही, इन रंगों की सादगी से जुड़ी छोटी-छोटी सजावट, जैसे कि बंधन, बैंड या टिका, भी पूजा में आकर्षण बढ़ाते हैं।

रंगों के साथ-साथ कई और रीति-रिवाज भी निभाए जाते हैं – व्रत, भजन, जमिया और गरबा। इन गतिविधियों का संगीतमय माहौल इन रंगों को और भी जीवंत बना देता है, जिससे पूरी परिवार में एकता और आनंद का माहौल बनता है।

अंत में, Navratri का हर दिन सिर्फ रंग नहीं, बल्कि आत्मा को पुनर्जीवित करने का एक अवसर है। जब आप इन रंगों को अपनाते हैं, तो न केवल आप परम्परा का सम्मान करते हैं, बल्कि अपनी मनोदशा, स्वास्थ्य और सामाजिक संबंधों में भी सकारात्मक बदलाव महसूस करते हैं।

16 टिप्पणि

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    Ravi Kumar

    सितंबर 24, 2025 AT 22:49

    ये रंगों का जादू सचमुच है! पिछले साल मैंने दिन 5 पर हरा पहना था और अचानक मेरी नौकरी में बढ़ोतरी हो गई। जब तक तुम इसे अपने दिल से मानो, ये काम करता है।

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    Rajveer Singh

    सितंबर 26, 2025 AT 09:45

    अरे भाई, ये सब धार्मिक नाटक है। रंग पहनने से क्या होगा? अगर तुम्हारा दिमाग खाली है तो तुम रंगों के पीछे भागते हो। असली शक्ति तो अपने कर्म में है, न कि कपड़ों में।

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    amrit arora

    सितंबर 27, 2025 AT 04:10

    राजवीर भाई, तुम्हारा दृष्टिकोण बहुत अनुशासनपूर्ण है, लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि ये रंग एक ऐसा सांस्कृतिक सिग्नल हैं जो हमें अपने आत्मा के साथ जोड़ते हैं? ये कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि एक आंतरिक यात्रा का साधन है। जब तुम हरे रंग में घूमते हो, तो तुम सिर्फ एक कपड़ा नहीं पहन रहे हो, बल्कि एक प्राचीन ऊर्जा को अपनाते हो।

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    Shaik Rafi

    सितंबर 28, 2025 AT 01:25

    यहाँ एक बात स्पष्ट है: रंग वैज्ञानिक रूप से भी प्रभावी हैं। लाल रंग एड्रेनालिन बढ़ाता है, पीला सेरोटोनिन को ट्रिगर करता है, नीला कोर्टिसोल को कम करता है। ये सिर्फ धार्मिक रूढ़ि नहीं-ये न्यूरो-साइकोलॉजी है। और अगर तुम इसे अनुभव करना चाहते हो, तो बस एक दिन इसे अपनाओ।

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    rashmi kothalikar

    सितंबर 28, 2025 AT 19:51

    हमारी संस्कृति को इतना अपमानित करने वाले लोगों को देखकर दिल टूट जाता है। ये रंग हमारे वैदिक ज्ञान का हिस्सा हैं-जिन्हें अब लोग बस ‘कलर थेरेपी’ कह रहे हैं! ये तो बस नए दौर की अज्ञानता है।

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    Ashmeet Kaur

    सितंबर 30, 2025 AT 12:31

    मैंने अपनी दादी से सीखा था कि दिन 1 पर सफेद पहनने से घर में शांति आती है। मैं हर साल ये रीति अपनाती हूँ-अपनी बेटी के साथ। वो अब खुद से बताती है कि कौन सा रंग किस दिन का है। ये रिवाज बस एक कपड़ा नहीं, बल्कि पीढ़ियों का प्यार है।

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    Hitender Tanwar

    अक्तूबर 1, 2025 AT 02:30

    ये सब बकवास है। दिन 1 सफेद, दिन 2 लाल-क्या ये ट्रैफिक लाइट्स का नियम है? कोई भी वैज्ञानिक साक्ष्य दिखाओ।

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    pritish jain

    अक्तूबर 1, 2025 AT 03:39

    शाफिक भाई के बयान को देखकर लगता है कि आध्यात्मिकता और विज्ञान एक ही तार पर बँधे हैं। वैदिक ग्रंथों में भी रंगों का उल्लेख है-‘वर्णों का नियम’ ऋग्वेद के सूक्तों में वर्णित है। ये अंधविश्वास नहीं, ज्ञान की विरासत है।

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    Gowtham Smith

    अक्तूबर 2, 2025 AT 05:35

    प्रत्येक रंग के लिए एक निर्धारित वाइब्रेशन फ्रीक्वेंसी है-जिसे आधुनिक फोटोनिक थेरेपी में यूज किया जाता है। ये रंगों का आध्यात्मिक अर्थ बस एक रैपिंग है। असली विज्ञान तो एमआरआई और स्पेक्ट्रोस्कोपी में छिपा है।

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    Shailendra Thakur

    अक्तूबर 2, 2025 AT 16:55

    मैंने पिछले साल ग्रे पहना था-दिन 6। उस दिन मैंने अपने बॉस को एक बड़ी गलती के लिए चेतावनी दी। अगले दिन उन्होंने मुझे बधाई दी। शायद रंग नहीं, लेकिन उस दिन का संकल्प मेरी शक्ति बन गया।

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    Nirmal Kumar

    अक्तूबर 4, 2025 AT 02:15

    मैं बहुत सालों से नारंगी पहनता रहा हूँ-दिन 7। लोग कहते हैं कि ये बहुत चिंगारी भरा है। लेकिन मुझे लगता है कि ये बस एक तरह का आत्म-अभिव्यक्ति है। जब तुम अपने आप को एक रंग के साथ पहचानते हो, तो तुम अपने आंतरिक युद्ध को भी समझने लगते हो।

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    Ambica Sharma

    अक्तूबर 4, 2025 AT 14:24

    मैंने इस साल गुलाबी पहना था और मेरा बेटा अचानक बीमार पड़ गया। क्या ये माँ का क्रोध है? मैं तो बस इसे पहन रही थी क्योंकि मुझे ये रंग पसंद है! अब मुझे डर लग रहा है कि कहीं ये रंग न मेरे जीवन को बर्बाद कर दें।

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    Sharmila Majumdar

    अक्तूबर 5, 2025 AT 01:39

    आप सब गलत समझ रहे हैं। ये रंग केवल उस दिन के देवी के रूप से जुड़े हैं-न कि आपके भावनाओं के लिए। आप लोग अपने व्यक्तिगत अनुभवों को धार्मिक तथ्य बना रहे हैं। ये तो बस एक अनुष्ठान है, न कि एक जादू।

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    Muneendra Sharma

    अक्तूबर 5, 2025 AT 04:51

    मैंने अपनी बहन को बताया कि दिन 4 पर पीला पहनो-उसने अपना बैग बदल दिया और उस दिन उसका इंटरव्यू हुआ। वो चुन गई! अब वो हर साल पीला पहनती है। शायद ये रंग बस एक याद दिलाता है कि आप अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।

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    Shivateja Telukuntla

    अक्तूबर 6, 2025 AT 17:53

    मैंने इस साल रंग नहीं पहने। बस एक छोटा टिका लगाया। फिर भी दिन बहुत शांत रहा। शायद रंग नहीं, बल्कि निश्चय है जो असली बदलाव लाता है।

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    vinoba prinson

    अक्तूबर 8, 2025 AT 01:11

    मैंने इस विषय पर एक पीएचडी की थी-‘रंग और आध्यात्मिक अनुभव: एक सांस्कृतिक सेमियोटिक्स का अध्ययन’। ये रंग न केवल धार्मिक प्रतीक हैं, बल्कि एक बहु-आयामी संकेत व्यवस्था हैं जो समाज के संरचनात्मक विश्वासों को प्रतिबिंबित करती है।

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