अगले दिन सुबह 6:12 बजे सूर्य की पहली किरण निकलेगी, और शाम 5:55 बजे वो अपना अंतिम आशीर्वाद देने वाला है — ये सिर्फ एक समय नहीं, बल्कि लाखों भक्तों के जीवन का एक पवित्र मोड़ है। खरणा पूजा, चहथ पूजा 2025 का दूसरा दिन, 26 अक्टूबर 2025 को बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से और नेपाल के तराई क्षेत्र में अनुष्ठित होगा। इस दिन कोई भी भोजन या पानी नहीं लेता — न नमक, न चीनी, न दूध का बर्तन। बस एक खट्टी-मीठी चीज़: गुड़ का खीर और रोटी, जिसे सूर्य भगवान और छठी मैया को अर्पित किया जाता है।
खरणा: निर्जला व्रत का दिन, जहाँ शरीर शांत होता है, आत्मा जागती है
इस दिन का अर्थ बस भूखा रहना नहीं है। ये एक अंतर्दृष्टि है। राधा कृष्ण मंदिर के अनुसार, "अंतर्निहित शुद्धता बाहरी अनुष्ठानों से ज्यादा महत्वपूर्ण है।" इसलिए भक्त न सिर्फ भोजन छोड़ते हैं, बल्कि अपने विचारों को भी शुद्ध करते हैं। कोई गुस्सा, कोई ईर्ष्या, कोई अहंकार — सब छोड़ दिया जाता है। ये व्रत दिन के पहले बजे से शाम के आखिरी सूरज तक चलता है, और इसका अंत तभी होता है जब आकाश में लालिमा डूब जाए।
खीर बनाने का तरीका भी नियमों से भरा है। दूध और चावल को केवल मिट्टी के बर्तन या तांबे के बर्तन में पकाया जाता है। चीनी का इस्तेमाल नहीं — सिर्फ गुड़। और रोटी के आटे में कोई नमक नहीं। ये सब एक निश्चित अनुक्रम का हिस्सा है, जिसे ड्रिक पंचांग ने सटीक रूप से दर्ज किया है। सूर्योदय: 6:12 बजे, सूर्यास्त: 5:55 बजे — ये समय बस एक तालिका नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक घड़ी है।
चहथ पूजा का चार दिन का सफर: एक अटूट श्रृंखला
खरणा सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक श्रृंखला का मध्य बिंदु है। इससे पहले, नहाय खाय — 25 अक्टूबर — को भक्त गंगा या सोन नदी में स्नान करते हैं, घर साफ करते हैं, और लौकी और छोले का सात्विक भोजन खाते हैं। इसके बाद आता है खरणा — शरीर को भूख से शुद्ध करने का दिन।
फिर आता है सांझ का अर्घ्य — 27 अक्टूबर, शाम 5:40 बजे। लाखों भक्त नदी में जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। पानी कमर तक, हाथ में बांस के डिब्बे में ठेकुआ, गन्ना, और फल। वो गाते हैं — चहथ के गीत, जो अपने आप में एक प्राचीन भाषा हैं। ये गीत बेटियाँ अपनी माँ को सुनाती हैं, बहनें बहन को, बेटे अपनी बहन को।
और फिर — अंतिम पल: उषा अर्घ्य — 28 अक्टूबर, सुबह 6:30 बजे। सूरज निकलने से पहले, जब आकाश अभी भी नीला है, भक्त अपने अर्घ्य को नदी में डालते हैं। और तभी, वो व्रत टूटता है। इस दिन का चहथ तिथि 6:04 बजे शुरू होता है और 7:59 बजे समाप्त होता है। इस बीच का समय — लगभग 96 घंटे — पूरी तरह से पवित्र है।
क्यों इतना जोश? बिहार से नेपाल तक का सांस्कृतिक जुड़ाव
ये त्योहार सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक है। बिहार के पटना, गया, भागलपुर में नदियों के किनारे लाखों लोग इकट्ठे होते हैं। नेपाल के तराई में भी वही गीत गाए जाते हैं, वही खीर बनाई जाती है। ये एक सांस्कृतिक सीमा नहीं, बल्कि एक अनुभूति है — जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर जाती है।
इसकी जड़ें वैदिक काल में हैं। रुद्राक्ष रत्न के अनुसार, ये त्योहार वैदिक सूर्य पूजा का एक विकसित रूप है। लेकिन आज ये केवल पूजा नहीं, बल्कि एक सामुदायिक बंधन है। यहाँ कोई नहीं अकेला है। एक बूढ़ी महिला जो अपने बेटे के लिए व्रत रखती है, एक लड़की जो पहली बार खीर बना रही है, एक युवा लड़का जो नदी में अर्घ्य देने के लिए बैठा है — सब एक ही श्वास में जी रहे हैं।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं? आध्यात्मिक गहराई
राधा कृष्ण मंदिर के आध्यात्मिक विश्लेषण के अनुसार, खरणा का दिन "अपने आप को खाली करने" का दिन है। जिस तरह नदी अपने तल में बालू छोड़ देती है, उसी तरह इस दिन आत्मा अपने भावों को छोड़ देती है। फिर सांझ का अर्घ्य — ये "स्वीकार करने" का दिन है। जीवन की अस्थिरता, दुख-सुख का द्वैत। और फिर उषा अर्घ्य — ये "उम्मीद" का दिन। एक नया दिन, एक नया अवसर।
ये त्योहार किसी एक विश्वास का नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक अनुभव का है — जिसमें शरीर की तपस्या, मन की शुद्धता और आत्मा की आशा एक साथ बहती हैं।
क्या होगा अगले दिन?
28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य के बाद, भक्त घर लौटते हैं। खीर और रोटी का बंटवारा होता है। बच्चे अपने दादा-दादी को चाट लेते हैं। बुजुर्ग अपने नातियों को बताते हैं — "ये त्योहार हमारे पिता-पितामह के समय से चल रहा है।" और फिर शाम तक, नदियों के किनारे खालीपन हो जाता है। लेकिन दिलों में — एक शांति बस जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
खरणा पूजा पर निर्जला व्रत क्यों रखा जाता है?
खरणा पर निर्जला व्रत शरीर को शुद्ध करने और आत्मा को भगवान के प्रति समर्पित करने का तरीका है। यह व्रत सूर्योदय से सूर्यास्त तक चलता है, जिसमें कोई भोजन या पानी नहीं लिया जाता। इसका उद्देश्य भौतिक आवश्यकताओं से दूर जाकर आध्यात्मिक शक्ति को जगाना है, जैसा कि राधा कृष्ण मंदिर द्वारा बताया गया है।
खरणा पर खीर और रोटी क्यों खाई जाती है?
खीर और रोटी को गुड़ और बिना नमक के बनाया जाता है क्योंकि ये सात्विक भोजन माने जाते हैं — जो शरीर को शांति देते हैं। ये भोजन पहले सूर्य भगवान और छठी मैया को अर्पित किया जाता है, फिर भक्त उसे खाते हैं। इससे व्रत का अंत आध्यात्मिक अनुष्ठान के साथ होता है, जो बस भूख मिटाने का नहीं, बल्कि आभार व्यक्त करने का तरीका है।
चहथ पूजा का समय क्यों इतना सटीक है?
चहथ पूजा के समय वैदिक ज्योतिष और चंद्रमा की तिथि (शुक्ल पक्ष की षष्ठी) पर आधारित हैं। ड्रिक पंचांग और रुद्राक्ष रत्न जैसे स्रोतों ने इन समयों को वैज्ञानिक रूप से गणना की है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय न केवल आध्यात्मिक, बल्कि भौतिक ऊर्जा के अनुकूल हैं, जिससे अर्घ्य की शक्ति अधिकतम होती है।
चहथ पूजा का इतिहास क्या है?
चहथ पूजा की जड़ें वैदिक काल में हैं, जहाँ सूर्य की पूजा जीवन और ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती थी। यह त्योहार मिथिला क्षेत्र (बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से) में विकसित हुआ और धीरे-धीरे नेपाल तक फैल गया। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान है, जिसमें गीत, नृत्य और परिवारों का बंधन शामिल है।
क्या बाहरी तरीके जरूरी हैं?
नहीं। राधा कृष्ण मंदिर के अनुसार, बाहरी अनुष्ठान तो हैं, लेकिन वास्तविक शुद्धता अंदर की होती है। अगर कोई व्रत रखता है लेकिन दिल में क्रोध या ईर्ष्या है, तो वह व्रत का अर्थ नहीं समझता। यह त्योहार अंतर्मन की शुद्धता का त्योहार है, जिसमें भावनाएँ अधिक महत्वपूर्ण हैं।
चहथ पूजा के बाद क्या होता है?
उषा अर्घ्य के बाद, भक्त अपने व्रत को तोड़ते हैं और परिवार के साथ खीर और रोटी का बंटवारा करते हैं। इसके बाद घरों में खाना बनाया जाता है, दोस्तों और पड़ोसियों के साथ भोजन होता है। यह दिन एक नए जीवन के आह्वान के रूप में मनाया जाता है — जहाँ शुद्धता, आभार और उम्मीद के साथ नया सप्ताह शुरू होता है।
Ankur Mittal
अक्तूबर 29, 2025 AT 15:58सूर्योदय 6:12, सूर्यास्त 5:55 - ये समय बिल्कुल सही है। मैंने पिछले साल गया में देखा था, नदी के किनारे लाखों लोग, बिना किसी शोर के। शांति का असली मतलब यही है। 🌅
Tanya Srivastava
अक्तूबर 30, 2025 AT 15:40अरे यार ये सब बकवास है! गुड़ वाली खीर? नमक नहीं? तो फिर ये खीर किस तरह की है? मैंने तो बाजार से खरीदी है और उसमें चीनी थी! ये लोग अपने आप को बहुत ही शुद्ध समझते हैं 😂
shubham gupta
अक्तूबर 30, 2025 AT 21:34गुड़ का इस्तेमाल सिर्फ सात्विकता के लिए नहीं, बल्कि ये एक प्राकृतिक शर्करा है जो धीरे-धीरे ऊर्जा देती है। चीनी की तुलना में इसका जीआई इंडेक्स कम होता है। ये व्रत शरीर के लिए भी सुरक्षित है।
Diksha Sharma
नवंबर 1, 2025 AT 05:19ये सब एक बड़ा षड्यंत्र है। ड्रिक पंचांग? वो कौन है? क्या ये सब राजनीतिक ताकत के लिए बनाया गया है? नेपाल में भी ये चलता है? शायद भारत ने नेपाल को भी इस धार्मिक बाध्यता में फंसा दिया है। 🤔
Amrit Moghariya
नवंबर 2, 2025 AT 23:22मैंने तो खरणा पर बिना खीर के रोटी खाई, और फिर रात को पिज्जा खा लिया। क्या मैं अब नरक में जाऊँगा? 😏 ये व्रत तो बस एक फेसबुक पोस्ट का ट्रेंड है।
anand verma
नवंबर 3, 2025 AT 15:10यह त्योहार भारतीय संस्कृति की गहराई को प्रदर्शित करता है। इसमें धार्मिक अनुष्ठान, पारिवारिक बंधन और प्राकृतिक चक्र का सामंजस्य निहित है। यह केवल एक आस्था नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है।
ashi kapoor
नवंबर 5, 2025 AT 13:30मैंने पहली बार खरणा पर खीर बनाई - गुड़ का इस्तेमाल करके, मिट्टी के बर्तन में, बिना नमक के। मेरी दादी ने देखकर आँखें भर लीं। उन्होंने कहा - ये वो खीर है जो हमारे पितामह खाते थे। मैं रो पड़ी। ये सिर्फ खाना नहीं, ये यादें हैं। ❤️
Yash Tiwari
नवंबर 6, 2025 AT 05:08इस व्रत का वास्तविक उद्देश्य शरीर को निर्जल रखना नहीं, बल्कि मन को निर्वाण की ओर ले जाना है। जब तक तुम अपने अहंकार को नहीं छोड़ते, तब तक तुम्हारा व्रत बस एक नृत्य है - नाच तो रहे हो, पर आत्मा अभी भी बंधी है। ये त्योहार अंतर्मन की शुद्धता का परीक्षण है।
Mansi Arora
नवंबर 7, 2025 AT 07:40अरे ये सब तो बहुत अच्छा लगता है... लेकिन अगर कोई डायबिटीज है? या गर्भवती महिला? इनके लिए ये व्रत तो जानलेवा है! लोग तो बस इंस्टाग्राम पर फोटो डालने के लिए ये सब करते हैं। बाकी लोगों की जिंदगी का क्या?
Amit Mitra
नवंबर 8, 2025 AT 17:03मैं नेपाल के तराई से हूँ। हमारे यहाँ भी यही गीत गाए जाते हैं - चहथ के गीत। मेरी दादी ने मुझे बताया कि ये गीत उनकी माँ ने उन्हें सुनाए थे। ये एक ऐसा बंधन है जो नदियों के पार भी बना रहता है। ये त्योहार न सिर्फ धार्मिक है, बल्कि एक सांस्कृतिक याददाश्त है।
sneha arora
नवंबर 9, 2025 AT 01:31मैंने पहली बार इस व्रत को रखा और मुझे लगा मैं नहीं रह पाऊँगी... लेकिन जब सूरज डूबा तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने अपने दिल का बोझ उतार दिया। शांति मिली। धन्यवाद 🙏❤️
Gajanan Prabhutendolkar
नवंबर 10, 2025 AT 23:57ये सब ज्योतिषीय गणनाएँ? ड्रिक पंचांग? ये सब तो बस ब्राह्मणों की रचना है। आज के विज्ञान के अनुसार, सूर्य की किरणें अलग ही बात करती हैं। ये व्रत एक आधुनिक अंधविश्वास है - जिसे लोग अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिए बनाते हैं।
Akshat goyal
नवंबर 11, 2025 AT 06:09मैं इस व्रत को नहीं रखता, लेकिन इसका सम्मान करता हूँ।
Ankur Mittal
नवंबर 13, 2025 AT 03:13मैंने देखा है - एक बूढ़ी महिला जो अपनी बहू के लिए खीर बना रही थी। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन वो एक बूंद भी गिराए बिना बना रही थी। ये व्रत उनके लिए प्यार का अभिव्यक्ति है।
Siddharth Madan
नवंबर 14, 2025 AT 15:47मैंने ये व्रत रखा नहीं, लेकिन नदी के किनारे बैठकर देखा। उस शांति को बर्बाद करने का कोई हक नहीं।