जर्मनी में मुस्लिम विरोधी घटनाएं दुगुनी, सरकारी अनदेखी पर NGO का आरोप

24 जून 2024
जर्मनी में मुस्लिम विरोधी घटनाएं दुगुनी, सरकारी अनदेखी पर NGO का आरोप

जर्मनी में मुस्लिम विरोधी घटनाओं में बढ़ोतरी

जर्मनी में पिछले वर्ष मुस्लिम विरोधी घटनाओं की संख्या दुगुनी हो गई है, रिकॉर्ड 1,926 मामलों का आंकड़ा दर्ज करते हुए। यह 2023 की तुलना में 114% की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। CLAIM नेटवर्क, जो इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी नफरत की निगरानी करता है, के अनुसार यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इस उछाल का मुख्य कारण अक्टूबर 7 को हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले को माना जा रहा है।

प्रभाव और सरकारी रवैया

मुस्लिम विरोधी घटनाओं में इस बढ़ोतरी के बावजूद, सरकारी अधिकारियों पर पर्याप्त ध्यान न देने का आरोप लगाया जा रहा है। मुख्यधारा की पार्टियां, जो अब फरीद, मुस्लिम विरोधी पार्टियों की नीतियों को अपना रही हैं, ने इस मुद्दे को और भी जटिल बना दिया है। ऑल्टर्नेटिव फॉर जर्मनी (AfD), जो दावा करती है कि इस्लाम जर्मनी का हिस्सा नहीं है, ने जनता में दूसरी सबसे लोकप्रिय पार्टी बनने का स्थान पाया है। इससे संकेत मिलता है कि जर्मनी में इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी नफरत का उदय हो रहा है।

धार्मिक स्थलों और व्यक्तियों पर हमले

धार्मिक स्थलों और व्यक्तियों पर हमले

CLAIM नेटवर्क के अनुसार, 90 हमले इस्लामी धार्मिक स्थलों, कब्रिस्तान और अन्य संस्थानों पर किए गए। जबकि सबसे अधिक व्यक्तिगत हमले كلامي गाली-गलौच के रूप में हुए, जिनमें महिलाएं सबसे प्रमुख लक्ष्य बनीं। इसके अलावा, चार हत्या के प्रयास भी दर्ज किए गए हैं।

मुस्लिम जनसंख्या की तेजी

जर्मनी में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, वर्तमान में 5.5 मिलियन या कुल जनसंख्या का 6.6% है। इस वृद्धि के बावजूद, एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि हर दो में से एक जर्मन इस्लामोफोबिक विचार रखता है, जो स्थिति को और अधिक गंभीर बना देता है। इसके अलावा, इजराइल के गाजा में सैन्य विस्तार के बाद यहूदी विरोधी घटनाओं में भी वृद्धि हुई है।

अधिकारियों और मंत्रियों की प्रतिक्रिया

अधिकारियों और मंत्रियों की प्रतिक्रिया

अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने कुछ मुस्लिम समुदाय समूहों को 'ज़्यादा धीमे' तरीके से हमास या यहूदी विरोधी नफरत से दूरी बनाने के बारे में आरोप लगाया है। सरकार ने पहली बार इस्लामोफोबिया पर एक स्वतंत्र रिपोर्ट प्रकाशित की है और भेदभाव से निपटने के लिए नागरिक समाज परियोजनाओं का वित्त पोषण कर रही है।

CLAIM नेटवर्क की ओर से आलोचना

हालांकि, CLAIM की रिमा हनानो ने जोर देकर कहा है कि पर्याप्त कार्रवाई नहीं की जा रही है और मुस्लिम विरोधी नस्लवाद से लड़ने की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। यह स्थिति जर्मनी में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।

इस प्रकार, जर्मनी में बढ़ती मुस्लिम विरोधी घटनाएं सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह मानवाधिकार और समानता पर आधारित एक व्यापक मुद्दा है, जिसे ठीक करने की आवश्यकता है।

14 टिप्पणि

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    Gowtham Smith

    जून 26, 2024 AT 09:20

    ये सब बकवास है। जर्मनी में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, तो उनकी संस्कृति और धार्मिक आदतें भी बदल रही हैं। जब एक समुदाय अपने नियमों को दूसरे देश में थोपने लगे, तो वहां के लोगों का विरोध स्वाभाविक है। ये इस्लामोफोबिया नहीं, ये सामाजिक संरक्षण है।

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    Shivateja Telukuntla

    जून 28, 2024 AT 08:19

    इस आंकड़े को लेकर थोड़ा संदेह है। जर्मनी में रिपोर्टिंग के तरीके बदल गए हैं, अब हर छोटी बात को भी 'मुस्लिम विरोधी' कह दिया जाता है। ये आंकड़े जांच के बिना नहीं लिए जा सकते।

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    Ravi Kumar

    जून 29, 2024 AT 09:42

    अरे भाई, ये सब तो बस एक राजनीतिक धोखा है। जर्मनी के लोगों को अपनी गलतियों से बचने के लिए किसी और को गुलाम बनाना पड़ रहा है। मुस्लिम बच्चे स्कूल में जाते हैं, महिलाएं बाजार में खरीदारी करती हैं, फिर भी उन्हें दुश्मन बना दिया जा रहा है। ये नफरत का बाजार है, न कि सच्चाई।


    हम भारत में भी ऐसा ही देख रहे हैं - एक धर्म को दूसरे के खिलाफ हथियार बना दिया जा रहा है। ये नफरत का व्यापार है, जिसमें सब कुछ बेचा जा रहा है - भावनाएं, डर, भरोसा।


    अगर जर्मनी को वाकई समानता चाहिए, तो उसे अपने अल्पसंख्यकों को बचाना होगा, न कि उन्हें निशाना बनाना।

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    rashmi kothalikar

    जुलाई 1, 2024 AT 03:16

    मुस्लिम विरोधी? बस एक शब्द है। असल में ये लोग अपनी संस्कृति बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं। जर्मनी में आए इन लोगों को अपनी जगह देने के बजाय उन्हें बाहर भेजना चाहिए। ये नफरत नहीं, ये बचाव है।

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    vinoba prinson

    जुलाई 1, 2024 AT 20:35

    यहाँ एक अधिक सूक्ष्म विश्लेषण आवश्यक है - जर्मनी में आंकड़ों का निर्माण एक राजनीतिक अर्थशास्त्र के आधार पर हो रहा है, जहाँ इस्लामोफोबिया के आंकड़े एक नए नैतिक व्यवस्था के लिए एक वाहन बन गए हैं। इसके पीछे एक नवीन आधुनिकतावादी रूढ़िवादिता छिपी है, जो धार्मिक विविधता को एक आंतरिक खतरे के रूप में व्यक्त करती है।


    इसलिए, यह एक अनुमानित आंकड़ा नहीं, बल्कि एक सामाजिक निर्माण है, जिसका उद्देश्य नागरिक विश्वास को फिर से निर्धारित करना है।

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    Shailendra Thakur

    जुलाई 2, 2024 AT 22:56

    इस बात का एहसास होना चाहिए कि नफरत का बढ़ना किसी एक देश की समस्या नहीं, बल्कि दुनिया भर में बढ़ती असमानता का परिणाम है। जर्मनी के लोग भी बेरोजगारी, घरेलू अस्थिरता और अनिश्चित भविष्य के डर से जूझ रहे हैं। उनका गुस्सा मुस्लिम समुदाय पर निकल रहा है, लेकिन असली दुश्मन तो वही है जो इन लोगों को इतना असहाय बना रहा है।

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    Muneendra Sharma

    जुलाई 4, 2024 AT 10:14

    इस बात का जिक्र नहीं हो रहा कि जर्मनी में अधिकांश मुस्लिम युवा जर्मन भाषा बोलते हैं, स्कूल में पढ़ते हैं, और सेना में भी सेवा करते हैं। फिर भी उन्हें 'अन्य' बना दिया जा रहा है।


    क्या ये सब असली नफरत है या सिर्फ एक राजनीतिक उपकरण? क्या ये आंकड़े वाकई नफरत को दर्शाते हैं या बस एक बहाना है जिससे लोगों को भाग लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है?

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    Anand Itagi

    जुलाई 5, 2024 AT 16:37

    मुस्लिम विरोधी घटनाएं बढ़ रही हैं और सरकार कुछ नहीं कर रही ये बात सही है लेकिन ये भी सच है कि बहुत से मुस्लिम समुदाय अपने अंदर ही बदलाव लाने के लिए तैयार नहीं हैं अगर वो अपनी आदतों को बदल नहीं पाएंगे तो ये नफरत और बढ़ेगी

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    Sumeet M.

    जुलाई 5, 2024 AT 20:01

    अरे ये सब बकवास है! जर्मनी में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, तो फिर उनके लिए अलग शहर बना दो! उनकी आदतें, उनकी धर्मग्रंथ, उनकी नस्ल - सब कुछ अलग है! ये जर्मनी का हिस्सा नहीं है! ये नफरत नहीं, ये बचाव है! और जो लोग इसके खिलाफ हैं, वो भी तो वही लोग हैं जो अपने घर में बच्चों को बेवकूफ बना रहे हैं!


    हमारे देश में भी ऐसा ही हो रहा है - जो लोग अपनी जमीन पर आकर अपने रंग-रीति थोप रहे हैं, उन्हें बाहर भेज देना चाहिए!

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    Kisna Patil

    जुलाई 6, 2024 AT 03:56

    हम सब एक दूसरे के लिए बने हैं - न कि एक दूसरे के खिलाफ। जर्मनी के लोगों को ये समझना चाहिए कि एक देश की शक्ति उसकी विविधता में होती है। मुस्लिम लोग भी इंसान हैं - उनके बच्चे भी खेलते हैं, उनकी माँएं भी रोती हैं।


    अगर हम अपने डर को नफरत में बदल देंगे, तो हम सब खो जाएंगे।

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    ASHOK BANJARA

    जुलाई 7, 2024 AT 18:55

    इस मुद्दे को लेकर एक गहरी दार्शनिक चर्चा आवश्यक है। नफरत का उदय केवल एक सामाजिक घटना नहीं, बल्कि एक अस्तित्वगत असफलता है - जब समाज अपने आप को पहचानने में असमर्थ हो जाता है।


    जर्मनी एक ऐसा देश है जिसने अपने अतीत के अपराधों को स्वीकार किया, लेकिन अब वही सामाजिक अपराध दोहरा रहा है। यह एक चक्र है - जहां निर्दोषों को दोषी बनाया जाता है ताकि विश्वास बचा रहे।


    इसलिए, जर्मनी को अपने भीतर की नफरत को नहीं, बल्कि अपने भीतर की भय को देखना होगा।

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    Sahil Kapila

    जुलाई 9, 2024 AT 18:49

    ये सब बस एक बड़ा धोखा है जो लोगों को भटका रहा है। जर्मनी के लोग अपनी बेरोजगारी और बढ़ती कीमतों के बारे में बात नहीं करना चाहते तो वो मुस्लिमों को गुलाम बना रहे हैं। ये जर्मनी का नहीं, ये दुनिया का समस्या है। जहां भी अर्थव्यवस्था खराब होती है, वहां नफरत बढ़ती है। इसलिए ये सब बस एक बहाना है।

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    Rajveer Singh

    जुलाई 10, 2024 AT 09:11

    इस्लाम को जर्मनी का हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए। ये एक धर्म है जो अपने आप को विश्व का सबसे ऊंचा मानता है। ये धर्म अपने आप को बदलता नहीं, दूसरों को बदलने की कोशिश करता है। ये नफरत नहीं, ये सावधानी है।


    हम भारत में भी इसी बात को देख रहे हैं - जहां कुछ लोग अपने धर्म के नाम पर दूसरों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।


    अगर जर्मनी अपने अस्तित्व को बचाना चाहती है, तो इस्लाम को अपने घर से बाहर भेज देना चाहिए।

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    Ankit Meshram

    जुलाई 11, 2024 AT 12:41
    ये सब बस डर की बात है।

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