प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दीवाली उत्सव: एक विशेष परंपरा
हर वर्ष की तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीवाली के पवित्र अवसर पर देश के वीर जाँबाजों के बीच समय बीताने की अपनी अनोखी परंपरा का पालन किया। इस वर्ष, उनका गंतव्य था गुजरात का कच्छ क्षेत्र, जो न केवल अपने अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने में तैनात भारतीय सेना, वायुसेना, नौसेना और बीएसएफ के जवान भी विकट स्थितियों में कार्यरत हैं।
बीएसएफ की वर्दी में, सबसे अग्रणी पंक्ति में
प्रधानमंत्री मोदी ने बीएसएफ के जवानों के साथ जब बीएसएफ की वर्दी पहनकर समय बिताया, तब वो उन्हें मिठाई भी भेंट करते दिखाई दिए। यह दृश्य अत्यधिक भावप्रद था और मोदी के देश के रक्षकों के प्रति उनके सम्मान और कृतज्ञता को वास्तविक रूप से प्रदर्शित करता था। उक्त अवसर पर उपस्थिति ने उन्हें एक बड़े सहायक का रूप प्रदान किया जो हर भारतीय को गर्व का अनुभव कराता है।
एकता दिवस और उससे सजीव हुई भक्ति
इससे पहले, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय एकता दिवस के कार्यक्रम में भाग लिया, जो सरदार वल्लभ भाई पटेल के विशाल योगदान को याद करता है। यह दिन देश की अखंडता और एकता को मजबूत करने के लिए समर्पित किया गया है। कच्छ में एकता दिवस के बाद हुई यह दीवाली ने यह दिखाया कि कैसे एकता और उत्सव दोनों मिलकर भारत के रक्षा कर्मियों को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें अपने कार्यों के प्रति कृतज्ञता का अनुभव कराते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का संदेश और सम्मान
प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में देशभक्ति और जिम्मेदारी के महत्व को रेखांकित किया। उनके अनुसार यह समय सभी नागरिकों के लिए उन जाँबाजों को याद करने का है, जो त्योहारों से दूर रहकर देश की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। मोदी ने अपने संबोधन में सभी सुरक्षाकर्मियों के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया और उनके परिवार वालों की भी सराहना की। जवानों ने भी प्रधानमंत्री के इस कदम की सराहना की और उन्हें बेहतर प्रेरणा मिली।
कैसे होता है इस पारंपरिक उत्सव का समापन?
पहले की वर्षों की तरह, इस साल भी जब प्रधानमंत्री जवानों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज की, तब उनके शब्दों और कार्यों में एक संवेदनशीलता और जुड़ाव झलक रहा था। यह परंपरा जहाँ एक ओर जवानों को मानवीय निकटता के महत्वपूर्ण संदर्भ में लाती है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उनके फर्ज को मजबूत बनाती है। इस परंपरा के समापन के पश्चात, जवानों के हृदय में इस यादगार मुलाकात की छाप रह जाती है, जो दीवाली के दीपों के समान उनके जीवन को रोशन करती है।
Shailendra Thakur
नवंबर 1, 2024 AT 10:49Sumeet M.
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