बिहार में बाढ़ और बारिश का तांडव: 8 जिलों में तेज बारिश का अलर्ट, 10 नदियां खतरे के पार

14 अगस्त 2025
बिहार में बाढ़ और बारिश का तांडव: 8 जिलों में तेज बारिश का अलर्ट, 10 नदियां खतरे के पार

बिहार में बाढ़: जनता पर कुदरत का कहर

इस बार बिहार में अगस्त महीने की बारिश ने हालात उलट-पुलट कर दिए हैं। नदियां उफान पर हैं और कई इलाके जलमग्न हो चुके हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद हवाई सर्वे कर तस्वीरें देखीं। उनके साथ जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी और बड़े अधिकारी भी थे। स्पेशल सर्वे के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित गांव व शहर देखे गए, जिसमें भागलपुर, भोजपुर, बेगूसराय और खगड़िया शामिल थे।

सोचिए, 24 जिलों में 17 लाख लोग बाढ़ की मार झेल रहे हैं। यह सिर्फ बारिश या नेपाल में गिरने वाले पानी से नहीं हुआ, बल्कि दोनों के मेल से नदियां गंगा, कोसी, बागमती, पुनपुन और घाघरा कई जगह खतरे के निशान से पार जा चुकी हैं। ऐसे में राहत और बचाव की जिम्मेदारी बड़ी हो गई है।

ताबड़तोड़ बारिश का अलर्ट और सरकारी तैयारियां

ताबड़तोड़ बारिश का अलर्ट और सरकारी तैयारियां

इंडियन मीटिरोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) ने पटना समेत 8 जिलों—जैसे किशनगंज, अररिया, सुपौल आदि—के लिए भारी से बहुत भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। मॉनसून का ये तेवर और नेपाल के जलभराव ने लाखों लोगों को घरों से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया है। राहत की बात यह है कि राज्यभर में अब तक बाढ़ से कोई मौत नहीं हुई है, मगर गांव, फसल, सड़कें सब पानी में घुस गए हैं।

नीतीश कुमार की अगुवाई में बुधवार को हाई-लेवल मीटिंग हुई, जिसमें बताया गया कि गंगा के किनारे बसे 10 जिले—बोचपुर, पटना, सारण, वैशाली, बेगूसराय, लखीसराय, मुंगेर, खगड़िया, भागलपुर और कटिहार—में करीब 25 लाख लोग मुश्किल में हैं। मुख्यमंत्री ने वहां के अफसरों को सख्त निर्देश दिए कि जितने लोग फंसे हैं, उनकी तुरंत निकासी हो, राहत सामग्री और मेडिकल सहायता पहुंचाई जाए, किसानों को फसल खराबे का मुआवजा मिले और टूटी सड़कें जल्दी दुरुस्त हों।

  • 16 NDRF/SDRF टीमें मौके पर तैनात हैं
  • 1200 से ज्यादा नाव राहत-बचाव में जुटी हैं
  • प्रभावित इलाकों के लोगों को सुरक्षित जगह पहुँचाया जा रहा है
  • खेत, सड़कें और घर जलमग्न हैं, पर हालात पर नज़र बनी हुई है

भारी बारिश अभी थमी नहीं है, मौसम विभाग ने साफ कहा है कि अगले कुछ दिनों में बिहार बाढ़ की दिक्कत और बढ़ सकती है। प्रशासन हर मोर्चे पर जुटा है। मैदानी इलाकों में राहत टीमों की तैनाती तेज कर दी गई है, खासकर साहर्सा, पूर्णिया, मुंगेर जैसे जिलों में। गंगा का पानी हल्का कम हुआ है, पर बाकी नदियां अब भी सिर चढ़कर बह रही हैं। गांव के गांव अभी भी टापू बने बैठे हैं। कई सड़कें और पुल बहने की कगार पर हैं।

सरकार दावा कर रही है कि राहत में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। कामकाज से लेकर खेती-बाड़ी सब प्रभावित है, लेकिन लोगों को उम्मीद है कि हालात काबू में आ जाएंगे। मौसम की मार कब तक जारी रहेगी, इसे लेकर वे मौसम विभाग की चेतावनी पर हर रोज नजर टिकाए बैठे हैं।

15 टिप्पणि

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    Shivateja Telukuntla

    अगस्त 14, 2025 AT 22:15
    बाढ़ का असली मुद्दा तो नदियों के किनारे बसे गांवों की बुनियादी तैयारी है। सड़कें बह जाती हैं, लेकिन राहत की टीमें आने में दिन लग जाते हैं। ये सिर्फ मौसम की गलती नहीं, ये नियोजन की असफलता है।

    हम तो हर साल यही देख रहे हैं, फिर भी कुछ नहीं बदलता।
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    Ravi Kumar

    अगस्त 16, 2025 AT 08:45
    अरे भाई ये बाढ़ तो अब बिहार का नया रिट्यूर्न ऑफर हो गई है! हर साल आती है, हर साल सरकार घोषणाएं करती है, हर साल नदियां उफान पर आती हैं, और हर साल लोग बिना घर के रह जाते हैं। इंडिया का जल संसाधन मंत्री क्या कर रहा है? क्या वो बारिश का फोटो शूट कर रहा है या वास्तविक समाधान ढूंढ रहा है?

    मैं तो कहता हूं, जिन लोगों ने नदियों के किनारे घर बनाए, उन्हें बस इतना समझाओ कि ये जमीन बाढ़ के लिए बनी है, न कि शहरी लक्ज़री के लिए।
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    rashmi kothalikar

    अगस्त 16, 2025 AT 13:48
    क्या ये सब अंग्रेजों की विरासत है? जब तक हम अपनी नदियों को नहीं समझेंगे, तब तक ये तांडव चलता रहेगा। हमारे पूर्वज नदियों के पास घर बनाते थे, लेकिन उन्होंने जानते हुए बनाया था। आज के लोगों को तो नदी के बारे में भी नहीं पता। बिहार की जमीन बाढ़ के लिए बनी है, अगर तुम वहां रहना चाहते हो तो इसकी तैयारी करो।

    और अब ये सब नेपाल के जिम्मेदार हैं? बस एक बार अपने घर के बाहर देखो।
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    vinoba prinson

    अगस्त 17, 2025 AT 19:42
    The ontological crisis of flood management in Bihar is not merely hydrological-it is epistemological. The state’s bureaucratic apparatus operates within a paradigm of reactive mitigation rather than proactive resilience. The NDRF deployments, while symbolically significant, are palliative interventions within a system that has institutionalized cyclical disaster.

    When the Ganga’s flow is measured in cubic meters per second, but the policy response is measured in press releases, we are not managing floods-we are performing governance.
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    Shailendra Thakur

    अगस्त 18, 2025 AT 12:43
    मैं तो बस इतना कहूंगा कि जिन लोगों के घर डूबे हैं, उनके लिए ये बातें बहुत आसान हैं। लेकिन जो लोग राहत में जुटे हैं, उनकी मेहनत की तारीफ करना चाहिए।

    1200 नावें निकालना, 16 टीमें तैनात करना-ये छोटी बात नहीं है। अगर हम इन लोगों को सलाम करेंगे, तो बाकी का हिस्सा भी ठीक हो जाएगा।
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    Muneendra Sharma

    अगस्त 19, 2025 AT 08:20
    मुझे लगता है कि बाढ़ का सबसे बड़ा असर बच्चों पर पड़ रहा है। स्कूल बंद, पढ़ाई रुकी, घर खो गया।

    क्या कोई सोच रहा है कि अगले साल ये बच्चे कैसे लिखेंगे? क्या कोई पुस्तकालय या डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म तैयार कर रहा है? नहीं। हम सिर्फ राहत सामग्री भेज रहे हैं। ये तो बचाव है, लेकिन भविष्य का निर्माण नहीं।
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    Anand Itagi

    अगस्त 19, 2025 AT 22:29
    ये सब बहुत बड़ी बात है पर मुझे लगता है कि जब तक हम नदियों को अपना हिस्सा नहीं मानेंगे तब तक कुछ नहीं बदलेगा

    हम उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं लेकिन वो तो हमें बता रही हैं कि ये हमारी जमीन है न कि हमारी जगह
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    Sumeet M.

    अगस्त 20, 2025 AT 08:46
    अब तो बिहार का नाम ही बाढ़ के लिए हो गया है! ये बारिश क्यों हो रही है? क्योंकि हमारे नेता बारिश के बारे में बात करने के लिए ही चुने गए हैं! जिन्होंने नदियों के किनारे घर बनाए हैं, उन्हें निकाल देना चाहिए! नेपाल का जल नहीं, हमारी लापरवाही जिम्मेदार है! अगर तुम गंगा के किनारे रहना चाहते हो तो अपने घर को ऊंचा बनाओ! ये देश का नहीं, तुम्हारा घर है!
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    Kisna Patil

    अगस्त 21, 2025 AT 13:50
    ये बाढ़ तो बिहार के लोगों की अपनी जिंदगी का हिस्सा बन गई है।

    लेकिन ये जिंदगी का हिस्सा होना अच्छा नहीं है। हमें ये समझना होगा कि हम अपने बच्चों को एक ऐसी दुनिया में छोड़ रहे हैं जहां बाढ़ एक रूटीन है।

    हमें बस राहत नहीं, हमें रिसिलिएंस चाहिए। हमें बच्चों को सिखाना होगा कि नदी क्या है, और उसके साथ कैसे रहना है।
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    ASHOK BANJARA

    अगस्त 22, 2025 AT 12:44
    हम बाढ़ को एक प्राकृतिक आपदा समझते हैं, लेकिन असल में ये एक सामाजिक आपदा है।

    हमने नदियों के किनारे शहर बसाए, उनके बाढ़ के मैदान को इमारतों से भर दिया, और फिर उन्हें बाढ़ का दोष देने लगे।

    प्राचीन भारत में नदियों के किनारे बसे गांवों में घरों की छतें ऊंची होती थीं, और जमीन ऊंची बनाई जाती थी। आज हम उस ज्ञान को भूल चुके हैं।

    हम नदियों के साथ नहीं, उनके खिलाफ रह रहे हैं। और अब वो हमें याद दिला रही हैं।
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    Sahil Kapila

    अगस्त 24, 2025 AT 10:10
    अरे ये तो हर साल होता है न भाई बिहार में बाढ़ तो बारिश के साथ आती है जैसे ब्रेकफास्ट के साथ चाय

    क्या सरकार ने कुछ नया किया है? नहीं बस एक बार फिर से नीतीश जी ने हेलीकॉप्टर से फोटो खींचा और ट्वीट कर दिया
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    Rajveer Singh

    अगस्त 25, 2025 AT 12:03
    हम लोग बाढ़ के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि ये सब क्यों हो रहा है? क्योंकि हमने अपनी जमीन को बेच दिया है। अंग्रेजों ने जो नदियों के बारे में सीखा था, उसे हमने भूल दिया।

    हमारे पूर्वजों ने नदियों को देवी माना था, आज हम उन्हें बाढ़ का कारण बता रहे हैं।

    हम जिस तरह से नदियों के साथ बर्ताव कर रहे हैं, वो उनके लिए अपमान है। और अब वो हमें सबक सिखा रही हैं।
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    Ankit Meshram

    अगस्त 27, 2025 AT 09:53
    सब कुछ ठीक है। बचाव चल रहा है। लोग सुरक्षित हैं।
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    Shaik Rafi

    अगस्त 28, 2025 AT 13:44
    बाढ़ का सच ये है कि हम जिस तरह से जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, वो नदियों के लिए असहनीय है।

    हम नदियों के किनारे शहर बना रहे हैं, फिर उन्हें बाढ़ का दोष दे रहे हैं।

    हम नदियों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वो तो हमें बता रही हैं कि ये जमीन उनकी है।

    हमें नदियों के साथ रहना सीखना होगा, न कि उनके खिलाफ लड़ना।
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    Ashmeet Kaur

    अगस्त 29, 2025 AT 01:34
    मैं बिहार की एक गांव की लड़की हूं, जहां बाढ़ आने पर लोग छत पर चढ़ जाते हैं और नावों में बैठकर अपने घर की चीजें बचाते हैं।

    लेकिन मैंने देखा है कि जब बाढ़ जाती है, तो लोग फिर से वहीं घर बना लेते हैं।

    हम नदियों को नहीं बदल सकते, लेकिन हम अपनी सोच बदल सकते हैं। अगर हम नदियों के साथ रहना सीख जाएं, तो बाढ़ भी अपना तांडव कम कर देगी।

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