जब अकाश मुकेश अंबानी, Reliance Industries के छोटे बेटे और श्लोका मेहता ने 2 अक्टूबर 2025 को रिशिकेश के पार्मथ निकेतन आश्रम में आयोजित पवित्र विजयादशमी यज्ञ में भाग लेने के लिए कदम रखा, तो सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने उनकी परम्परागत Indian prints में सजे पोशाकों को सराहा। इस परिवारिक यात्रा में अनंत मुकेश अंबानी और राधिका मर्चेंट भी अपने बच्चों के साथ उपस्थित थे, जिससे यह कार्यक्रम सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक घोषणा बन गया।
अंबानी परिवार ने पिछले कुछ महीनों में आध्यात्मिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी दिखायी है। मार्च 2025 में अनंत अंबानी ने राम नवमी के अवसर पर गुजरात के द्वारका की ओर 180 किलोमीटर पैदल यात्रा पूरी की थी—रोज़ लगभग 20 किलोमीटर, कुल 9 दिन, जबकि वह अपने Cushing's Syndrome के साथ संघर्ष कर रहे थे। इस यात्रा को Economic Times ने "शरीर की सीमाओं को चुनौती, आत्मा की जयकार" के रूप में चित्रित किया।
इस भावना को आगे बढ़ाते हुए, परिवार ने 2 अक्टूबर को एक धार्मिक यात्रा तय की—विजयादशमी का यज्ञ, जो भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह यज्ञ घने अरण्यों और गंगा के तीर्थस्थलों के बीच आयोजित हुआ, जहाँ श्रद्धालु अपने कर्म‑पथ की शुद्धि के लिए आटे।
पार्मथ निकेतन आश्रम उत्तarakhand के रिवर गंगा किनारे बसा एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र है। यहाँ रोज़ शाम को गंगा आरती का मंत्रोच्चार लाखों यात्रियों को आकर्षित करता है। विशेष रूप से विजयादशमी के दौरान, आश्रम में आयोजित यज्ञ में श्रद्धालुओं को वैदिक मंत्रों के साथ हवन‑पवित्रता का अनुभव मिलता है।
यज्ञ का लाइव प्रसारण यूट्यूब पर 6yJ8nNOlNm4 आईडी से हुआ, जिसमें 18 मिनट 31 सेकंड तक का वीडियो परिवार की भागीदारी को दर्शाता है। इस वीडियो में दर्शकों ने #anantambani और #radhikamerchant टैग देखे, जिससे सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर चर्चा में तेजी आई।
डिज़ाइन की बात करें तो अकाश ने परम्परागत भारतीय प्रिंट्स में एक चमकदार पटोला प्रिंट कुर्ता पहना। यह कुर्ता गुजरात के पतन से आया एक द हाथ‑बुना जटिल जाली‑डिज़ाइन था, जिसमें लाल, नीले और सफेद रंगों का मिश्रण था। कुर्ता के साथ उन्होंने सफ़ेद पैंट को मिलाकर रंग‑संतुलन बनाया, जिससे पोशाक का आकर्षण बढ़ा।
वहीं श्लोका ने नारंगी रंग की कुर्ता चुनी, जिसमें बैंडहामी (tie‑dye) का बेज‑रंग प्रिंट था। गले की किनारी पर सुनहरी सीक्विन का हल्का सिंगार था, जो परिधान में थोड़ा सौंदर्य‑त्वचा जोड़ता है। बेज‑रंग की सिधी‑फिट पैंट ने पूरी लुक को एलेगेंट बनाय रखा। इस संयोजन को Hindustan Times ने "परिवार ने ग्लैम‑आउट जैविक कपड़े की बजाय परम्परागत पोशाक चुनी" कहा।
सेंसेशनल बात यह है कि इस तरह के परिधान न केवल फैशन स्टेटमेंट हैं, बल्कि भारतीय हस्तशिल्प की जीवंतता को भी दिखाते हैं। पटोला और बैंडहामी दोनों ही भारतीय बुनाई की धरोहर हैं; उन्हें धारण करके अंबानी परिवार ने राष्ट्रीय कला‑परम्परा को सम्मानित किया।
सड़क पर खड़े साधारण दर्शकों ने कहा, "पारिवारिक सादगी दिखा रही है, ऐसे बड़े लोग भी परम्परा को महत्व देते हैं।" वहीं दिल्ली के प्रसिद्ध सांस्कृतिक इतिहासकार डॉ. श्याम सिंहा ने टिप्पणी की, "आज की ग्लोबल लिविंग में इस प्रकार के परिधान चुनना एक सामाजिक जिम्मेदारी की निशानी है, जहाँ परम्परा और आधुनिकता का समन्वय देखा जाता है।"
एक अन्य विशेषज्ञ, फैशन अनुसंधानकर्ता रीता गुप्ता, ने बताया कि पटोला और बैंडहामी जैसे प्रिंट्स की मांग 2023‑2025 के बीच 27% बढ़ी है, खासकर युवाओं में। उनका मनना है कि इस प्रकार के सार्वजनिक दर्शनों से शिल्पकारों को सीधे लाभ मिलेगा।
विजयादशमी यज्ञ के बाद, अंबानी परिवार ने अगले दो हफ़्तों में कुम्भ मेला के मुख्य कार्यक्रम में भाग लेने की योजना बनाई है, जैसा कि कुछ स्रोतों ने संकेत किया। इस दौरान, परिवार के सदस्य संभवतः गंगा आरती में भाग लेंगे और फिर अपने‑अपने व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं पर लौटेंगे।
साथ ही, अनंत की आध्यात्मिक यात्रा को देखते हुए, उल्लेखनीय है कि वह 2026 में फिर से किसी धार्मिक लक्ष्य के लिए लंबी पैदल यात्रा करने की संभावना बना रहे हैं, जिससे उसके स्वास्थ्य और दृढ़ता के बारे में नयी चर्चाएँ उत्पन्न होंगी।
विजयादशमी दुष्कर्म पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है; इस दिन राजसू के क्षत्रियों ने रावण के पूज्य पाप का नाश किया, और आज हिन्दू धर्म में इसे देवी दुर्गा की पूजा और यज्ञ के रूप में मनाया जाता है।
परिवार ने आध्यात्मिक साधना के माहौल में स्थानीय संस्कृति का सम्मान दिखाने के लिए पारम्परिक कपड़े चुने; यह न केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति थी, बल्कि भारतीय बुनाई‑कलाओं को प्रोत्साहित करने का एक सामाजिक संदेश भी था।
उनकी यात्रा ने दिखाया कि स्वास्थ्य चुनौतियों के सामने भी दृढ़ता और आध्यात्मिक विश्वास से लक्ष्य हासिल किया जा सकता है; यह उनके परिवार और बड़े जनता के बीच प्रेरणा बन गई।
पार्मथ निकेतन 20वीं सदी के मध्य में स्थापित एक प्रमुख हिन्दू आश्रम है, जो गंगा आरती, योग और वैदिक श्लोकों के शिक्षण में अग्रणी रहा है; यह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेताओं के आध्यात्मिक प्रवास का केंद्र रहा है।
पटोला और बैंडहामी जैसे प्रिंट्स 2023‑2025 में 27% मांग बढ़ी है; इस वृद्धि से स्थानीय कारीगरों को निर्यात‑मार्केट में धक्का मिला है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में थोड़ी रिफ़्रेश हुई है।
Amar Rams
अक्तूबर 11, 2025 AT 22:18अंबानी परिवार की इस यात्रा में परम्परागत पोशाक का चयन केवल फैशन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान का एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह चयन एथनोफोबिया की ओर झुके हुए वैश्विक फास्ट-फैशन के प्रति एक सूक्ष्म विरोधाभास प्रस्तुत करता है। पटोला और बैंडहामी जैसे प्रिंट्स के माध्यम से भारतीय वस्त्रशिल्प की जटिलता को सार्वजनिक मंच पर लाया गया है। इस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ आर्थिक विश्लेषण के साथ सामाजिक उत्तराधिकार को भी उजागर करती हैं। कुल मिलाकर, यह एक रणनीतिक सांस्कृतिक भागीदारी की तरह प्रतीत होता है।
Rahul Sarker
अक्तूबर 12, 2025 AT 14:58देखिए! हमारे महानगर के शासकों ने जब भी स्थलीय आंधी-तूफानों का सामना किया, तो हमेशा अपना रीति-रिवाज़ नहीं भूले। अकाश व श्लोका ने आज भी भारतीय संस्कृति के ध्वज को गंगा किनारे ऊँचा उठाया, जो राष्ट्रीय गर्व की असली परिभाषा है। अगर बाहरी लोग इस तरह के कदम नहीं उठाते, तो हमारी आत्मा कहीं और खो जाएगी। इसलिए यह परम्परागत पोशाक केवल फैशन नहीं, यह हमारे राष्ट्रीय चेतना की पुकार है।
Sridhar Ilango
अक्तूबर 13, 2025 AT 07:38विजयादशमी यज्ञ का यह महत्त्वपूर्ण क्षण अंबानी परिवार के लिए सिर्फ एक फोटोशूट नहीं था, बल्कि यह एक गहन सामाजिक संदेश था। पहले तो लोग सोचते थे कि यह केवल उच्च वर्ग का शोह़र है, लेकिन वास्तविकता में यहाँ पर परम्परागत पोशाक के माध्यम से कारीगरों को सम्मान मिला। पटोला कुर्ता में जटिल जाली‑डिज़ाइन ने बाग़ी शिल्पकारों को विश्व मंच पर दिखाया। उसी प्रकार बैंडहामी इम्प्रिंट ने बुनाई के इतिहास को पुनर्जीवित किया। इस आयोजन में जनसाधारण की भागीदारी ने मौखिक इतिहास को लिखने में मदद की।
निर्माण के इस चरण में हमने देखा कि कैसे आर्थिक दृष्टि से यह एक छोटा निवेश है, लेकिन सामाजिक लाभ अत्यंत बड़ा है।
विचार करें, अगर इतना बड़ा कॉरपोरेट परिवार स्थानीय कारीगरों को समर्थन देता है, तो इसका प्रभाव कितनी दूर तक फैलेगा?
कंपनी की सामाजिक उत्तरदायित्व की यह पहल कई मायनों में एक मॉडल बन सकती है।
दूसरी ओर, इस यज्ञ में उपस्थित अन्य प्रमुख हस्तियों के साथ भी यह एक संवाद का मंच बन गया।
स्थानीय ग्रामीणों ने अपने हाथों के काम को लेकर गर्व महसूस किया, और यह गर्व न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामुदायिक पहचान को मजबूत करता है।
भविष्य में अगर ऐसे बड़े नाम फिर से इस तरह के प्रोजेक्ट में शामिल हों, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक नई लेहर आ सकती है।
वहीं, यज्ञ के तकनीकी पहलू, जैसे लाइव यूट्यूब स्ट्रीमिंग, ने डिजिटल दर्शकों को भी इस रिवायत में बांध दिया।
ऐसे मिश्रित पहलु-परंपरा, तकनीक, और सामाजिक उत्तरदायित्व-एक समग्र रूप से विकसित भारत की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।
हमें यह याद रखना चाहिए कि हर छोटी‑छोटी पहल में बड़ा बदलाव समाहित हो सकता है, जब वह सही दिशा में हो।
अंत में, इस आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में आर्थिक शक्ति की क्या भूमिका है।
और यही कारण है कि हम भविष्य में ऐसे और भी आयोजन की आशा रख सकते हैं।
priyanka Prakash
अक्तूबर 14, 2025 AT 00:18परम्परागत पोशाक सच‑मुच फैंसी लग रही थी।
Pravalika Sweety
अक्तूबर 14, 2025 AT 16:58मैं मानता हूँ कि ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में स्थानीय कारीगरों के काम को प्रदर्शित करना एक सकारात्मक कदम है। यह न केवल कला के संरक्षण में मदद करता है, बल्कि ग्रामीण समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाता है। इस प्रकार की पहल से युवा वर्ग में भी पारम्परिक कला के प्रति सम्मान बढ़ता है। अंत में, हमें इस तरह के कार्यक्रमों को लगातार समर्थन देना चाहिए ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत जीवंत बनी रहे।
anjaly raveendran
अक्तूबर 15, 2025 AT 09:38इस यज्ञ में अंबानी परिवार का परम्परागत पोशाक चयन वास्तव में एक सूक्ष्म सामाजिक संदेश है। पटोला और बैंडहामी दोनों ही भारतीय वस्त्रशिल्प की बुनियादी धरोहर हैं, जो कई दशक पहले ही शिखर पर पहुँची थीं। आज जब बड़े कॉरपोरेट नाम इन प्रिंट्स को अपनाते हैं, तो यह कारीगरों के लिए एक नई बाजार संभावना खोलता है। इसके साथ ही जनता में परम्परागत वस्त्रों के प्रति जागरूकता भी बढ़ती है। इस प्रकार का सार्वजनिक समर्थन स्थानीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
Danwanti Khanna
अक्तूबर 16, 2025 AT 02:18बहुत अच्छा देखा, अंबानी परिवार ने गंगा किनारे इस तरह की परम्परागत पोशाक को अपनाया, वास्तव में यह हमारी सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करने का एक उत्कृष्ट माध्यम है; इस पहल से कारीगरों को न सिर्फ सराहना मिलती है, बल्कि आर्थिक लाभ भी होता है; आशा करता हूँ भविष्य में ऐसे और भी आयोजनों में इस तरह की परम्पराएँ उजागर होती रहें।
Shruti Thar
अक्तूबर 16, 2025 AT 18:58परम्परागत वस्त्रों को दिखाना सामाजिक रूप से सकारात्मक है क्योंकि यह कारीगरों को मदद करता है
Nath FORGEAU
अक्तूबर 17, 2025 AT 11:38yo देखो अंबानी fam ने फिर से गंगा के किनारे परम्परा दिखा दी, ekdum cool laga, ट्रेंड सेट कर रहे हैं वाकये.
Hrishikesh Kesarkar
अक्तूबर 18, 2025 AT 04:18यह पहल कारीगरों को सीधे लाभ पहुंचाती है।
Manu Atelier
अक्तूबर 18, 2025 AT 20:58अंबानी परिवार का इस यज्ञ में परम्परागत वस्त्र चयन न केवल सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का एक उदाहरण है, बल्कि यह भारतीय परिधान उद्योग के पुनरुत्थान में एक रणनीतिक कदम भी दर्शाता है। इस सिलसिले में, राष्ट्रीय स्तर पर वस्त्र शिल्प को पुनः प्रोत्साहन देना आर्थिक विस्तार का आधार बन सकता है।
Anu Deep
अक्तूबर 19, 2025 AT 13:38ऐसी पहल से उम्मीद है कि युवा पीढ़ी भी परम्परागत कपड़ों को रोज़मर्रा के पहनावे में अपनाएगी, जिससे कारीगरों को निरंतर समर्थन मिलेगा।
Preeti Panwar
अक्तूबर 20, 2025 AT 06:18बहुत ही प्रेरणादायक दृष्टिकोण! 😊 अंबानी परिवार की इस परम्परागत पोशाक ने न सिर्फ संस्कृति की महत्ता को दोहराया, बल्कि कारीगरों के लिये एक नई आशा की किरण भी दी। उम्मीद है भविष्य में ऐसे कई और कार्यक्रम होंगे। 🌟
MANOJ SINGH
अक्तूबर 20, 2025 AT 22:58परम्परागत पोशाक देख के मन गा रहा है, लेकिन कहूँ तो बड़े नामों को इतेफाक से कम और कुछ तो प्रोफिट के लिए भी कर रहे हैं, देखना होगा कि कारीगरों को कितना असली फायदा हुआ।
Vaibhav Singh
अक्तूबर 21, 2025 AT 15:38यह पहल दर्शाती है कि बड़े व्यवसाय भी सामाजिक उत्तरदायित्व को गंभीरता से ले सकते हैं, और इससे स्थानीय कारीगरों को सच्चा लाभ मिलता है।
harshit malhotra
अक्तूबर 22, 2025 AT 08:18सरीरसे कहूँ तो अंबानी परिवार ने इस यज्ञ में जिस तरह पटोला और बैंडहामी का प्रयोग किया, वह सिर्फ सौंदर्य की बात नहीं, बल्कि आर्थिक निर्याण का भी संकेत है। इस पहल ने कारीगरों को वैश्विक मंच पर लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा है। साथ ही, यह दर्शकों को भी यह बताता है कि परम्परागत वस्त्रों में अभी भी अपार मूल्य है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर, यह एक सकारात्मक सामाजिक‑आर्थिक मॉडल है, जिसे और बढ़ावा देना चाहिए।
Ankit Intodia
अक्तूबर 23, 2025 AT 00:58सही बात है, स्थानीय कारीगरों को समर्थन देना बहुत ज़रूरी है, और इस तरह के बड़े इवेंट्स में उनका काम दिखना उनकी पहचान को और मजबूत करता है।